सोमवार, 21 जून 2010

वो प्यासी आंटी

मैं अपनी मामी के यहाँ रहकर पढ़ रहा हूँ. मैं बी कोम फर्स्ट इयर में हूँ. घटना पिछले साल की है. मामी के घर के सामने वाले घर में एक स्टील के बर्तनों के व्यापारी सेठ रकम चन्दजी रहते थे. उनके कोई औलाद नहीं थी. उनकी पत्नी का नाम था शांति देवी. शांति देवी कि उमर थी करीब पैंतालीस साल. उनका वजन करीब एक सौ किलो. रंग एकदम गोरा. अगर वजन ना हो तो मिस इंडिया बन जाए. गुलाबी गुलाबी होंठ. ब्लाउज में भी ना समाने वाला सीना. हरदम मुस्कुराता चेहरा. सभी कहते हैं कि सेठजी की रूचि केवल पैसे कमाने में थी और उन्होंने कभी पत्नी की कोई ख़ुशी नहीं देखी इसलिए उनके कोई औलाद हुई नहीं.
शांति आंटी से मेरी भी अच्छी पहचान हो गई. वो कई बार हमारे यहाँ आती और मेरे और मामी के साथ घंटों गप्पें लड़ती. मेरे मामा रेलवे में गार्ड थे. इसलिए सप्ताह में पांच दिन बाहर रहते सर्दीयों के दिन थे. जबरदस्त ठण्ड पड़ रही थी. एक दिन मेरी मामी ने मुझे एक टिफिन दिया और शांति आंटी को देने के लिए कहा. मैं उनके घर चला गया. दरवाजा खुला हुआ था. मैं भीतर चला गया. शांति आंटी कहीं दिखाई नहीं दी. मैंने हर कमरे में देखा लेकिन शांति आंटी कहीं नहीं मिली. मैं वापस रवाना होने को ही था कि मुझे रसोई के पीछे एक खुला आँगन दिखाई दिया. मैं उस आँगन के तरफ चला गया. जैसे ही मैंने आँगन में प्रवेष किया मैंने जो नजारा देखा वो मुझे डराने के लिए काफी था. मैंने अपनी ज़िन्दगी में कभी ऐसा ना तो देखा था और ना ही सुना था. मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई. शान्ति आंटी का ब्लाउज खुला हुआ था. उनकी पीठ मेरी तरफ थी. उनकी गोरी गोरी और जगह जगह से उभारवाली और मांसल खुली पीठ बहुत ही अच्छी लग रही थी. मैंने देखा कि कोई उनकी बाहों में है और उनकी छाती से चिपटा हुआ है. मैं थोडा दूसरी तरफ चला आया. मैंने जैसे ही अपनी नजर दौड़ाई मेरा मुंह खुला का खुला रह गया. वो सुरेन्द्र था. मेरी ही स्कुल में पढनेवाला एक लड़का. सुरेन्द्र मुझसे भी एक साल छोटा था. शांति आंटी उसे रह रहकर अपने सीने से दबाती जा रही थी और बोलती जा रही थी " तू भी मुझे जोर से दबा. और जोर से दबा. मेरे सीने को चूम. शर्मा मत. डर मत. कुछ नहीं होगा. बस तू मुझे एक बार तो चूम." मैं सब समझ गया. सेठजी वाली बात सही थी. वो केवल धंधे में मगन थे.
मैं वापस घर आ गया. सारी रात मुझे नींद नहीं आई. मुझे बार बार शांति आंटी कि पीठ दिखाई दे रही थी और उनकी आवाज सुनाई दे रही थी " मुझे एक बार तो चूम." मैं करवटें बदलने लगा. दूसरे दिन जब शांति आंटी मिली तो ना जाने क्यूँ मेरी नजरें उनके जिस्म के हर खुले हिस्से तो घूरने लगी. वो घर में चली गई तो मैं भी उनके पीछे पीछे अन्दर चला आया. उन्होंने मुझे देखते ही कहा " तो आज पहली बार तुझे फुर्सत मिली है मेरे घर आने में. बड़ा पढ़ाकू हो चला है रे तू . आ बैठ मैं तेरे लिए गरम दूध लेकर आती हूँ. एक काम कर तू अंगम में चल. धूप है तो ठण्ड भी कम लगेगी." मैं ना जाने क्यूँ समझ गया कि अब सुरेन्द्र के बाद मेरी भी बारी हो सकती है. मैं आँगन में रखी खाट पर बैठ गया. शांति आंटी आई. उन्होंने मुझे दूध का गिलास थमा दिया. मैं दूध पीने लगा. दूध पीते पीते मैंने देखा कि शांति आंटी ने अपना आँचल गिरा दिया है. उनका ब्लाउज नजर आने लगा. उनके भारी भारी स्तन दिखने लगे. उन दोनों भारी स्तनों के बीच की रेखा कोई गहरी घाटी जैसी लग रही थी. अब शांति आंटी ने अपनी साडी को घुटनों तक उठाया और बोली " सर्दी में धूप अच्छी लगती है." मैंने उनकी टांगें देखी. एकदम गोरी. मोटी मोटी लेकिन बहुत मीठी लग रही थी. शांति आंटी अब मेरे एकदम पास आ गई. मैं थोडा घबराया लेकिन मन ही मन खुश भी हो रहा था.
शांति आंटी ने एकदम से मुझे अपनी बाहों में जकड लिया. मैं उनकी दो मजबूत बाहों में पकड़ा गया. लेकिन मैंने भी तुरंत अपने दोनों हाथ उनके कमर के चारों तरफ फैला दिए
शांति आंटी को ये अच्छा लगा. अब उन्होंने अपने ब्लाउज के बटन खोल दिए. मैं उनके चोली में दिख रहे दोनों भारी भारी स्तनों को देखकर पागल हो गया. मेरे चेहरे पर आई हवास को शांति आंटी तुरंत समझ गई. वो उठी और मेरा हाथ पकड़कर अपने कमरे में ले गई. उन्होंने कमरे का दरवाजा बंद किया और ब्लाउज खोलकर फेंक दिया. मैं उन्हें देखने लगा. इसके बाद उन्होंने अपनी साड़ी खोल दी. फिर उन्होंने मेरा शर्ट पकड़कर खोला और मुझे अपने सीने से चिपका लिया. उनके सीने से आ रही भीनी भीनी महक मुझे अच्छी लग रही थी. शांति आंटी बोली " मेरी छातीयों को चूम." मैंने अपने होंठों से उनके दोनों स्तनों को चूमने लगा. शांति आंटी के मुंह से अजीब अजीब आवाजें करने लगी. उन्होंने अपनी चोली के हुक निकाले और कमर के ऊपर के हिस्से को पूरी तरह से नंगा कर दिया. अब शांति आंटी की साँसें तेज चलने लगी. वो मुझसे लिपट गई और मुझे लेकर बिस्तर पर गिर गई. मैं उनकी पकड़ में कसमसाने लगा. अब शांति आंटी ने मेरे गालों को चूमना शुरू किया. मेरा सारा जिस्म तड़पने लगा. उन्होंने मेरा मुंह पकड़ा और मेरे होंठों को दूसरे हाथ से पकड़कर अपने होंठों के पास ले लिया. फिर शांति आंटी ने एकदम से ही मेरे होंठों को कसकर अपने होंठों मेदबा लिया और लगी जोर जोर से चूमने और चूसने. मैंने भी अब वापस उनके होंठ ऐसे ही चूमे और चूसे.
शांति आंटी के शरीरी की हलचलें बढ़ती चली गई. उन्होंने मुझे छोड़ा और पलंग से उतार गई. उन्होंने अपने पेटीकोट का नाडा खोल दिया. अब शांति आंटी मेरे सामने पूरी तरह से नंगी खड़ी थी. उन्होंने मेरा भी पैंट खोल दिया और खींच खींच कर अंडर वेअर भी खोल दिया. अब मैं डरने लगा. सोचने लगा कि अगर किसी ने देख लिया तो मामा-मामी तो मुझे मार मारकर घर से निकाल देंगे. मैंने शांति आंटी को रोकने की कोशिश की लेकिन शांती आंटी एक तरह से आउट ऑफ़ कण्ट्रोल हो चुकी थी. उन्होंने मुझे कसकर पकड़ा और फिर से पलंग पर गिर गई. अफ्ली बार किसी औरत का पूरा नंगा शरीर मैंने देखा था और अब मुझे लिपटा हुआ था. एक बार फिर शांति आंटी ने मुझसे अपने गाल; गरदन ; होंठ ; स्तन और अपनी जांघें चुमवाई. आखिर में उन्होंने मुझे पण यूपर लिटाया और मेरे शरीरी के निचले हिस्से को अपनी टांगों में दबा लिया. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा गुप्तांग किसी मलमली जगह से टकरा गया है. ये शांति आंटी का गुप्तांग था. शांति आंटी ने मेरा हाथ पकड लिया. पहले उन्होंने मेरे हाथ से अपना गुप्तांग सहलावाया और फिर अपना जनानानंग भी सहल्वाया. मुझे दोनों गुदगुदी जगहें बहुत अच्छी लगी. अब शांति आंटी ने मेरे गुप्तांग को अपने गुप्तांग और जननांग के करीब ले जाकर अपनी जाँघों में दबाकर मुझे ऊपर नीचे करना शुरू किया. मेरी धड़कने बहुत तेज हो गई. मैंने अपने गुप्तांग को शान्ति आंटी की जाँघों के बीच उनके गुप्तांग और जननांग के करीब लगभग तीन मिनट तक ऊपर नीचे घुमाया ही था कि अचानक मेरे गुप्तांग से कुछ बहाने लगा. मैं तड़प उठा. शांति आंटी ने मेरे होंठ दबाकर चूस लिए और खुद भी तड़पने लगी. मैं इसके बाद चुपचाप बचता बचाता अपने घर पर आ गया.
दो दिन बाद जब मैंने चोरी छुपे शांति आंटी के घर के पिछवाड़े से उनके आँगन में झांककर देखा तो शांति आंटी हमारे ही मौहल्ले के एक और मेरे हम उम्र लड़के घनश्याम से लिपटी हुई थी. मैं सोचने लगा कि आखिर एक औरत के ये भूख कितनी बढ़ जाती है जब उसका पति रकम चन्दजी जैसा होता होगा. अगले दिन एक बार फिर मैंने झाँका. आज फिर सुरेन्द्र था. तीसरे दिन तो हद हो गई. मामी बाहा गई हुई थी. दूध वाला आया. मैं दूध ले रहा था. आज दूधवाले का भतीजा दूध लेकर आया था. उसकी उम्र करीब अठारह साल रही होगी. तभी शांति आंटी ने उसे आवाज लगाईं. दूधवाला उधर चला गया. शांति आंटी उसे लेकर भीतर चली गई. मैंने दूध का पतीला अन्दर रखा और शांति आंटी के घर में चुपचाप घुस गया. शांति आंटी ने दूध लेने के बाद उस लड़के को पकड़ना चाहा लेकिन वो लड़का घबराकर बाहर आ गया. मैं उसके पीछे पीछे आया और उसे समझाया कि वो मजाक कर रही है. शांति आंटी अब तेज सांसें लेने लगी थी. मेरी नियत ख़राब हो गई. मैं उनके सामने जाकर खड़ा हो गया. शांति आंटी मुझे देखे ही खुश हो गई. मैं उनके साथ उनके कमरे में चला गया. एक मिनट के भीतर ही हम दोनों के बार फिर नंगे हो चुके थे. शांति आंटी का भारी भरकम शरीर मेरी बाहों में नहीं आ पा रहा था. उसने मेरे मुंह को अपने दोनों स्तनों के बीच में फंसा लिया और दबा दिया. मैं पागलों की तरह उन दोनों भरे हुए स्तनों को चूमने लगा. आज मैं ज्यादा जोश में था. शांति आंटी और मैंने एक बार फिर उस दिन की तरह अपने गुप्तांगों को आपस में मिलाया और मेरे गुप्तांग से निकले गीले गाढे पानी ने उनकी जान्ग्झों के बीच के हिस्से को एक बार फिर भिगो दिया.
इसी तरह मैं और शांति आंटी सप्ताह में दो दिन मिलते और यही सब दोहराते. लेकिन शांति आंटी थी कि वो मेरे इतने के बाद भी सुरेन्द्र और दो और उसके दोस्तों को बुलाती और उन्हें अपने साथ दोपहर को सुलाती और लिपटाती . मुझे यह देख ना जाने क्यूँ गुस्सा आने लगा था.
एक दिन मैंने अपने मामा-मामी को सवेरे सवेरे अपने कमरे में पलंग पर सेक्स करते देख लिया. मैंने उन्हें पूरे ध्यान से देखा. बाद में चुपचाप मामा कि आलमारी से एक कंडोम निकालकर अपनी जेब में रख लिया. अगले दिन दोपहर को शांति आंटी के घर गया. पिछवाड़े के आँगन की दीवार को लांग कर मैं अन्दर आ गया. मैंने देखा कि शान्ति आंटी ने सुरेन्द्र और मन्नू दोनों को अपनी बाहों में भर रखा है. वे दोनों उसे जगह जगह चूम रहे थे. शांति आंटी अब पलंग पर लेट गई. पहले मन्नू उन पर चढ़ गया. उसने जोर जोर से शांति आंटी के कमर के निचले हिस्से पर अपना गुप्तांग मरना शुरू किया. शांति आंटी बड़े मजे से यह सब कर वाने लगी. फिर सुरेन्द्र चढ़ा. उसने भी यही किया. मुझे अब इन दोनों पर गुस्सा आने लगा था. केवल एक ही बात मुझे मेरी तरफ लगी वो ये कि शांति आंटी ने केवल अपना ब्लाउज निकाला रखा था. चोली पहनी हुई थी. नीचे पेटीकोट और उस पर साड़ी भी थी. करीब आधे घंटे के बाद वे दोनों चले गए. शांति आंटी ने अपना ब्लाउज पहना और बाहर आ गई.
सवेरे मैंने कॉलेज जाते वक्त शांति आंटी से मुलाकात की. मैंने मुस्कुराते हुए उन्हें अपनी जेब से निकालकर कंडोम दिखाया. वे खुश होते हुए बोली " तू अभी आजा. सेठजी दूसरे शहर गए हैं. दोपहर में हो सकता है लौट आयें. चल पिछवाड़े से अन्दर आजा. तेरी मामी को भी पता नहीं चलेगा." मैं पिछले दरवाजे से अन्दर चला गया. अमिन और शांति आंटी तुरंत ही पूरी तरह से नंगे हो गए. अब शांति आंटी ने मेरा लिंग पकड़ लिया और उसे अपने हाथों से सहलाने लगी. उसने मुझा होंठों पर चूमा. फिर मैंने उनके स्तनों पर अपने हाथ फेरे. मेरा लिंग एकदम कड़क और बड़ा हो गया. मैंने और शांति आंटी ने मिलकर उसे मेरे लिंग पर धीरे धीरे चढ़ा दिया. शांति आंटी का निचला हिस्सा इतना बड़ा था कि मैं उस पर लेटता तो भी वो निचला हिस्सा आधा ही छुप पाता. उनके उस हिस्से की उंचाई भी बहुत थी. जब मैंने अपना ताना हुआ लिंग उनकी टांगों के बीच में घुसाया तो वो उनके जननांग तक पहुँच ही नहीं पाया. अब शांति आंटी ने अपनी टांगें फैला दी. मैंने अपने आपको उन फैली हुई टांगों के बीच में ले लिया. अब मैंने अपने तने हुए लिंग को उनके जननांग से टच करा दिया. शांति आंटी ने मेरे लिंग को पकड़ा और एक ही झटके में अपने जननांग के भीतर धकेल दिया. उनका जननांग इतना बड़ा; गुदगुदा और गीला गीला था कि मेरा गुपतांग पूरा का पूरा उसमे घुस गया. शांति आंटी का जिस्म अब एक तरह से नाचने लगा. उन्होंने मुझे जोर से दबा दिया. इस दबाव से मेरा लिंग और अन्दर चला गया. अब मैंने शांति आंटी के होंठ अपने होंठों के बीच ले लिए. करीब दस मिनट तक मैंने अपने लिंग से शांति आंटी के जननांग के अन्दर झटके लगाए. उनका गुदगुदा शरीर मुझे पागल किये जा रहा था. मैं लगा रहा. शांति आंटी और मैंने अपनी होंठों को बिलकुल भी अलग नहीं किया और लगातार बार बार चूसते रहे. मैंने और पांच मिनट तक ऐसे ही किया फिर मुझे मेरे लिंग के अन्दर कुछ बहता हुआ महसूस हुआ. शांति आंटी को भी इस चीज का अहसास होने लगा. अब उन्होंने मुझे और भी कसकर पकड़ा और पास रखी स्टूल से एक मावे की बर्फी उठाकर अपने मुंह में ले ली. और मेरे होंठों के अनादर उस बर्फी को दे दिया. अब मैं और शांति आंटी उस बर्फी को एक साथ खा रहे थे. इस मिठाई ने हमें और भी उत्तेजित कर दिया. तभी मेरे लिंग से बहुत सारा गाढ़ा मलाईदार रस निकलना शुरू हो गया और कंडोम में भरना शुरू हो गया. इस भराव से शांति आंटी के जननांग के अन्दर जोर से गुदगुदी शरू हो गई. हम दोनों इसका मजा लेने लगे. कुछ देर बाद हमारी सारी ताकत ख़तम हो गई. हम युहीं लेटे रहे.
मैं बाद में उठा. कंडोम को बाहर फेंका और कपडे पहन लिए. शांति औनी ने मेरे होंठ फिर चूमे और बोली " अब हम हर सप्ताह में एक बार यह जरुर करेंगे." मैं खुश हो हो घर लौट आया. मैं मन ही मन खुश हो गया कि अब सुरेन्द्र और मन्नू नहीं आयेंगे. अब शांति आंटी मेरी है. लेकिन जब मैं अगले दिन दोपहर को ऐसे ही शांति आंटी के पिछवाड़े से अन्दर झाँका तो मैंने देखा कि मन्नू और सुरेन्द्र के साथ एक और लड़का है जिसे शांति आंटी ने अपनी टांगों के बीच दबा रखा था.
मैं सोचने लगा कि आखिर शांति आंटी कितनी प्यासी है.

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