बुधवार, 26 सितंबर 2012

तीन बहनों के बीच फंस गए देवरजी.

मेरी सगाई पिताजी ने एक बहुत बड़े घर में कर दी. वैसे मेरे पिताजी भी अच्छे खासे अमीर थे मगर लड़केवाले हम से दस गुना ज्यादा अमीर  थे. लड़का खुबसूरत तो था मगर मुझ से बारह साल बड़ा था. शादी के बाद मैं ससुराल पहुंची. घर बहुत बड़ा था. मेरे सास-ससुर, दो जेठ और जेठानीयाँ. मेरे ससुर की बहन का लड़का भी वहीँ रहकर पढ़ रहा था. सूरज नाम था. मेरा हम उमर मगर बेहद खुबसूरत. हालांकि मैं मेरे पति के साथ सेक्स करके खुश थी मगर ना जाने क्यूँ बार बार नजर सूरज पर जाकर ठहर जाती. मं दिन भर छुप छुपकर उसे देखा  करती.
धीरे धीरे मैंने हिम्मत जुटानी शुरू कर दी. सूरज को देखकर मुस्कुरा देती. उसके पास बैठने की कोशिश करती. उस से बाते करती कोलेज और  कोलेज की लडकीयों के बारे में. सूरज थोड़ा खुल गया मुझ से इन सब से. मैं अब सूरज के साथ अकेला होने का मौका तलाशने लगी.  एक दिन यह मौका भी मिल गया. घर में सभी बाहर गए हुए थे. मेरा सास सो रही थी अपने कमरे में. सूरज कोलेज से आया. मैं हेली को उसे देख उसके कमरे में चली गई. गर्मी का मौसम था. सूरज कमरे में गया उर उसने अपनी कमीज और जींस खोलकर पलंग पर लेट गया बनियान और अंडरवियर में ही और पंखा चला दिया. सूरज ने जैसे ही मुझे आते देखा तो वो बाथरूम में भाग गया. मैं जोर से हंसने लगी. सूरज शोर्ट्स पहन्कार बाहर आया. मैंने उसे चिढ़ाना शुरू किया. " ये स्टडी रूम है और तुम बेडरूम की तरह लेटे हो." सूरज भी हंसने लगा. हम दोनों एक साथ हँसे. मैंने हँसते  हँसते सूरक के हथेली पर अपनी हथेली रख दी और उस की हथेली को दबा दिया. सूरज ने मेरी तरफ देखा. मैंने अब उसकी हथेली को उर जोर से दबा दिया और अपनी बायीं आँख दबाकर शरारात से हंस दी. सूरज शायद इशारा समझ गया. 
इस घटना के बाद मैं और सूरज जब भी आमने सामने आते और अकेले होते तो मैं उसकी तरफ देखकर आँख मार देती और बदले में सूरज मेरी हथेली को अपने हाथ से दबा देता. हम दोनों धीरे धीरे इसी तरह मिलते मिलते काफी हिल मिल गए. अब आग दोनों तरफ बराबर जलने लगी थी. इसे क्या कहूँ कि मेरे पति के साथ सेक्स का अभार्पूर मजा लेने के बावजूद मैं सूरज की तरफ खींचती चली जा रही थी.
एक दिन मैं अपनी माँ से मिलकर ससुराल वापस पहुंची तो सासू जी बाहर ही मिल गी , वो कही जा राही थी. उन्होंने बताया कि सूरज अकेला ही है घर में. चाय बनाकर उसे पिला देना. मैं ने हाँ कहा. घर आते ही मैं मन ही मन बहुत खुश हुई. घडी देखी. चार बजे थे. सबसे पहले मेरे ससुर आनेवाले थे और वो भी छः बजे से पहले नहीं. पूरे दो घंटे थे मेरे पास.

मैंने जल्दी से चाय  बनाई और सूरज के कमरे में आ गई. सूरज मुझे देखकर खुश हो गया. मेरा दिल भी बहुत जोर से धड़कने लगा. हम दोनों ने चाय पी. मैंने सूरक का हाथ  पकड़ लिया. सूरज ने अपने दुसरे हाथ से मेरा  दूसरा हाथ पकड़ लिया. हम दोनों एक दूजे से सट कर खड़े हो गए. मिने धीरे से अपना चेहरा सूरज की तरफ बढाया. सूरज की साँसे तेज हो गई. मैंने सूरज के गालों पर एक लंबा और बहुत ही गीला चुम्बन धर दिया. सूरज ने धीरे से मेरे गालो को चूम लिया. मैंने सूरज को अपनी बाहों में ले लिया. सूरज मेरी आगोश में आकर मुझे गालों पर चुम्बनों की बरसात करने लगा. मैंने सूरज को पलंग की तरफ ईशारा किया. हम दोनों पलंग के पास आ गए. मैंने सूरज सभी कपडे एक एक कर के उतार दिए. फिर मैंने सूरज को इशारा किया. सूरज ने मेरे सभी कपडे उतार दिए. मैंने सूरज को पलंग में आने को कहा उर खुद पलंग पर सीधा लेट गई. सूरज का यह पहला मौका था अकिसी लड़की के साथ सेक्स का, वो घबरा रहा था. मैंने उसे अपनी तरफ खींचा और अपने नंगे जिस्म से चिपका लिया. अब सूरज मेरे कब्जे में था. कुछ देर हम दोनों ने च्म्बन का दौर किया. मैं बार बार घडी देखे जा रही थी. मैंने अब सूरज के कड़क और लम्बे हो चले लिंग को अपने जननांग में धीरे धीरे हाथ से पकड़कर भीतर की तरफ धकेलना शुरू किया. सूरज ने भी जोर लगाया. सूरज का लिंग मेरे जननांग में घुस गया. धीरे धीरे अन्दर बाहर कर हम दोनों ने कुछ देर सेक्स का मजा लिया. घडी में जैसे ही पौने  छः बजे हम दोनों अलग हो गए. 
इस सेक्स के बाद हम दोनों अक्सर अकेले होने का मौका तलाशने लगे. पहले सेक्स से हम दोनों की और खासकर मेरी भूख बहुत बढ़ गई थी सेक्स करने की. मगर दस दिन तक दोबारा मौका नहीं मिल सका. मैं अपने पति के साथ सेक्स करते हुए सूरज का चेहरा याद करने लग जाती. मैं सारा दिन कोशिश में रहती. एक दिन मेरे पति का फोन आया कि उन्हें अपने बॉस के घर एक पार्टी में जाना है और वे देर रात को लौटेंगे. मुझे मौका मिल गया. मैं सभी के सोने जाने के बाद चुपके से सूरज के कमरे में चली गई. सूरज मुझे देखकर खुश हो गया. मैंने सूरज को बता दिया कि कम से कम दो घंटे हमारे पास है. हम दोनों हमबिस्तर हो गये. अज हम दोनों को और भी मजा आया. मुझे तो बहुत ही मजा आया. आज मैंने कंडोम लगा लिया था सूरज के लिंग पर. आखिर में सूरज का लिंग कंडोम में भरकर मेरे जननांग में हलचल कर के शांत हो गया. हम दोनों एक लंबा फ्रेंच किस किया और मैं वापस अपने कमरे में आ गई.
अब रोज  मैं और  सूरज सप्ताह में कम से कम एक बार तो कहीं से भी मौका निकाल ही लेते सेक्स करने का. मेरा जिस्म इस डबल सेक्स से गजब का उभरने  लगा था. एक दिन मेरी बड़ी बहन मधु मेरे ससुराल मिलने आई. हम दोनों काफी देर आपस में बाते करती रही. सूरज घर पर ही था. मधु ने शरारात से मुझ से पूछा " ये सूरज तो बहुत ही चिकना मर्द है. "
यहाँ मैं  एक बात कहना चाहती हूँ कि मेरे और मधु के बीच में सिर्फ सोलह महीने का फर्क है. हम दोनों आपस में बहुत  खुली हुई है. सेक्स को लेकर भी खुल्लम खुली बाते कर लेती हैं.
मैं मधु से सोलह महीने छोटी हूँ और  स्वर्णा मेरे से दो साल छोटी है. मेरी सबसे छोटी बहन. स्वर्णा कुंवारी है. मधु बाईस की, मैं  बीस और स्वर्णा  अठारह साल की है. हम तीनों सेक्स को लेकर खुल्ले विचारों की है. 
मैंने मधु को अपने और सूरज के बारे में सब कुछ बता दिया. मधु ने मेरे कान में कहा " मुन्नू, एक दिन सूरज को मेरे साथ करो ना, मैं भी उसे चखना चाहती हूँ." मैंने मधु को हाँ कह दिया. मेरे पीहर में एक पूजा हवन रखा गया. मैं, मेरे पति और सब के साथ वहा गई. सूरज भी साथ था. घर में कई मेहमान आये हुए थे. मैंने सूरज को मधु से मिलवाया. मधु सूरज को घर दिखलाने  के बहाने ले गई.  हमारे घर के पिछवाड़े में एक कमरा था जो नौकरों के लिए था. मधु सूरज के साथ उस में चली गई. मधु ने सूरज को अपनी ईच्छा बतला दी. सूरज हक्का बक्का  हो गया. वो भागकर बाहर निकलकर आ गया. मैंने सूरज को समझाया और उसे मधु के साथ उस कमरे में भेज दिया फिर से.
मधु ने सूरज को बाहों में लिया और बोली " मेरी नीयत तो उसी दिन डोल गई थी जिस दिन मैंने मुन्नी  के यहाँ तुम्हे देखा था. आज तो सामय  कम है. फिर भी थोडा तो कर ही लेंगे. मधु ने सूरज के पेंट को उतारा और उसके लिंग को पकड़कर बाहर किया अंडरवीयर से.फिर मधु ने अपना  पेटीकोट ऊपर किया और सूरज के होंठों को अपने होंठों से जोर से चूम लिया. एक ही पल में दोनों के भीतर लहर उठ गई. सूरज का लिंग कड़क और लंबा हो गया. मधु ने तुरंत अपने हाथ से सूरज के लिंग को पकड़ा और खड़े खड़े ही अपनी टांगें फैलाई और अपने जननांग  का गेट चौड़ा किया और लिंग को उस से घुसा  कर अन्दर धक्का दिया. एक ही पल में सूरज का लिंग मधु के एकदम भीतर तक चला गया. करीब पांच मिनट तक ही दोनों इस सेक्स का मजा ले सके. आरती की आवाज शुरू हो गई तो दोनों अपने कपडे ठीक कर के बाहर आ गए. सूरज बहुत खुश हो गया., उसने मुझे कहा कि मधु के साथ वो और सेक्स करने को तैयार है. मैंने  मधु को यह खबर दे दी.
एक दिन दोपहर को अचानक मेरी उतेजना टीवी पर एक फिल्म देखते हुए बढ़ गई. रविवार था . मेरे पति  घर पर ही थे. मैं बेडरूम में गई., वो खर्राटे भर रहे थे. मेरी उत्तेजना चरम पर थी. सूरज दिखा. मैंने सूरज को ईशारे से बुलाया और हम छत पर चले गए. तेज धूप और हवा बिलकुल नहीं मगर मेरे दिमाग में फिल्म के उस सीन ने सेक्स की जबरदस्त भूख बढ़ गई थी. मैं  और सूरज छत पर बिस्तर रखने के लिए बने एक छोटे से कमरे में चले गए. कमरा हीटर की तरह तप  रहा था. मगर ये सबसे सेफ था. हम दोनों तुरंत नंगे होकर लिपट गए और बिस्तर पर घिर गए. सूरज ने जल्दी ही अपने लिंग को मेरे जननांग में डाल दिया. मैंने सूरज को जोर से झटके मारने को कहा. बहुत कम देर में हम दोनों के बदन पसीने से तर हो गए गर्मी के कारण. थोड़ी देर और हुई कि हमारे बदन में पसीना इतना हो गया कि दोनों के बदन आपस में फिसलने लगे. मगर सूरज को मैंने शुरू रखा, मेरी भूख बढती जा रही थी. पसीना इतना अधिक हो गया कि फिसलन की आवाज आने लगी. मेरे सीने से सूरज का सीना ऐसा चिपका और पसीने  से तेज आवाजें आने लगी. करीब आधा घंटा मैंने सूरज  से अपनी सारी भूख मिटवाई.. आखिर में जब सूरज के लिंग में से निकले मलाई ने कंडोम को भरा और मुझे पूरा चरम सुख दिया तब जाकर मेरी भूख शांत हुई.
अब ये बिस्तर वाला कमरा हम दोनों का अड्डा बन गया. अब तो हम सप्ताह में कम से कम दो बार सेक्स करने लगे.एक दिन मधु आई तो मैंने मधु और सूरज को उस कमरे में भेज दिया. दोनों ने खूब सेक्स किया. 
एक दिन मधु ने स्वर्णा को हम तीनो के बारे में बता दिया. स्वर्णा दोपहर में मेरे यहाँ आ गई. मैंने स्वर्ण को सूरज से मिला दिया. दोनों ने आपस में काफी देर बाते की. 
स्वर्णा ने जाते वक्त मुझे कहा " दीदी, मैं बहुत जल्दी ही सूरज के साथ सेक्स करुँगी. मेरी जिंदगी का पहला सेक्स होगा ये."
दो दिन बाद ऐसा संयोग हुआ के मेरे पति ऑफिस के काम से दो दिन के लिए बाहर चले गए. दोपहर को मैंने मौका देख सूरज को बुलाया. जब मैं सूरज के कमरे में गई तो देखा सूरज के कमरे का दरवाजा बंद है. मैंने झांक कर देखने की कोशिश की मगर कुछ पता नहीं चला. मैं वापस अपने कमरे में आ गई. कुछ देर बाद मेरी जेठानीयाँ भी बाहर निकल गई. अब मैं अकेली ही थी. मैं फिर सूरज के कमरे की तरफ गई. मैंने उसे आवाज दी और बताया कि घर में मैं अकेली ही हूँ. सूरज ने दरवाजा खोला. मैंने जैसे ही भीतर गई तो देखा कि स्वर्णा  पलंग में लेटी हुई थी. मैं समझ गई. मैंने सूरज को बिस्तर में जाने का ईशारा किया और खुद अपने सारे कपडे खोलकर उन दोनों के साथ बिस्तर में घुस गई. 
मैंने सूरज को बाहों में भरा और स्वर्णा से कहा " तू कहाँ से आ गई चिकनी." अब सूरज ने बारी बारी से हम दोनों को जननांग में अपने लिंग से भेदा और  प्यास बुझाई हम दोनों की.
हम तीनों काफी देर तक एक ही बिस्तर में सेक्स करते रहे.
मगर घर में सभी लोगों के रहते लगातार सभी का सूरज के साथ सेक्स करना संभव नहीं था. जेठानियों को मेरी बहनों का बार बार आना शक पैदा करने लगा था कि आखिर ये क्यूँ हो रहा है. मैंने और सूरज ने दिमाग लगाना शुरू किया किसी नए ठिकाने कि तलाश में. सूरज ने ठिकाना खोज लिया. हमारी कोठी में जहाँ कार गेराज था उस के बगल में एक कमरा था जिसमे दुनिया भर का कचरा जमा हुआ था और वो इस्तेमाल भी नहीं होता था. सूरज ने उस कमरे के सफाई करवा दी.उस कमरे में जाने का रास्ता घर के भीतर से भी था और बाहर से भी. मगर दोनों रस्ते ऐसे थे कि किसी को जल्दी से दिखाई ना दे सके. सूरज ने उसमे एक बिस्तर लगा दिया. अब उस कमरे को लेकर किसी को भी शक नहीं हो सकता था. मैंने सूरज के साथ अब उस कमरे में लगभग हर दुसरे दिन सेक्स करना शुरू कर दिया. स्वर्णा ने कोलेज के बीच में आने के योजना बनाई. स्वर्ण को भी यह कमरा पसंद आ गया. स्वर्णा ने हर मंगल और गुरु को दोपहर में दो बजे का समय तय किया. उस दिन उसके दो पीरियड्स खाली होते थे. स्वर्णा पहली बार इस कमरे में तो मैं और सूरज बिसर में ही थे. मेरा समय पूरा हो चुका था. स्वर्णा और सूरज बिस्तर में चले गए. मैं दोनों को सेक्स करता देखने लगी. मुझे बहुत अच्छा लगता अता जब वे दोनों मेरे सामने सेक्स करते थे तो.

अब हमारा ये नया अड्डा  सेक्स रूम बन गया था. मधु को सप्ताह या दस दिन में एकाध बार ही मौका मिल पाता था. अब हम चारों इसी कमरे में सेक्स करते हैं मगर एक साल बीत  चुका है पर किसी को को कुछ पता नहीं चल सका है. हमारा ये सेक्स रूम इसी तरह हमारी सेक्स की भूख को मिटाता रहे यही आरजू है.
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गुरुवार, 7 जून 2012

मेडम कि प्यास किस तरह  बुझाऊं - पार्ट वन 

मैं बरोड़ा के पास एक छोटे कसबे में एक केमिकल फेक्ट्री  में नौकरी में लगा. मालिक थे  समीर भाई. बहुत ही शांत स्वभाव के. उमर भी मेरे बराबर थी. एक दिन उन्होंने मुझे संडे के दिन घर बुलाया चाय के लिए. मैं उनके बंगले पर गया जो हमारी कोलोनी में सबसे पीछे बना हुआ था. समीर भाई ने अपनी पत्नि श्वेता से मिलवाया. मैं श्वेता को देखता रह गया. एकदम गुलाबी रंग, किसी होलीवूड की हिरोइन से कम खुबसूरत नहीं. जिस्म के एक एक हिस्से से रस टपक रहा था.  मैं जितनी देर वहाँ रहा श्वेता  ता मेडम को देखता रहा. रवाना होते वक्त श्वेता मेडम अचानक मुझे देख मुस्कुराई और बोली " आप आते रहियेगा, इनका भी मूड फर्श हो जाएगा." मैं हाँ बोलकर घर चला आया.

अब मैं हर छुट्टी के दिन समीर के यहाँ जाने लगा. श्वेता मेरे से बहुत घुलमिल गई थी. हम तीनों आपस में अच्छे दोस्त बन गए थे. एक बार श्वेता ने मुझे शाम को घर बुलाया. श्वेता ने कहा " मुझे आपसे कुछ बात करनी है. समीर बहुत ही अच्छे पति हैं मगर वो एक कमी के कारण कभी बाप नहीं बन सकते. दूसरी कमी है वो बिलकुल ठन्डे हैं. सेक्स को लेकर उनके दिल में कोई भूख नहीं है. मैं समीर की खूबसूरती और पैसे को देखकर इनकी बनी मगर ये बाते मुझे बाद में पता चली. मेरी जिंदगी सूखी नदी बन गई है जिसमे सेक्स का पानी है ही नहीं. तुम मेरे सूखेपन को दूर कर दो. मैं हमेशा के लिए तुम्हारी बन जाउंगी."
मैं श्वेता की बात से घबरा गया. मैंने कहा " मेरी सगाई अभी दो महीने पहले ही हुई है. एक महीने बाद शादी होनेवाली है. मेरी बीवी भी बहुत खुबसूरत  है और हम दोनों एक दूजे से प्यार भी करते हैं..
श्वेता ने जवाब दिया " जतिन, एक महीने बाद जो होगा वो तब देखेंगे. बस तब तक तुम मेरी रातें रंगीन कर दो. मेरी जवानी की प्यास बुझा दो." मैं श्वेता की उस दयावनी आवाज और तड़प को समजते हुए उसकी तरफ देखकर बोला " हाँ, ये काम मैं कर दूंगा." श्वेता का चेहरा खिल उठा. उसने कहा " परसों समीर चार दिन के लिए सिंगापुर जा रहे हैं. इन चार दिनों हम एक साथ ही रहेंगे." 
वो दिन भी आ गया जब समीर के सवेरे रवाना होते ही श्वेता ने मुझे अपने घर बुला लिया. मैं जब श्वेता के घर पहुंचा तो मैंने देखा कि श्वेता ने आज एक स्लीवलेस टॉप पहना हुआ था जिसका गला बहुत नीचे तक खुला हुआ था और श्वेता का गुलाबी उभरा सीना अपने दोनों गोल पहाड़ों के साथ झांक रहा था. श्वेता ने नीचे एक शोर्ट पहना हुआ था जो जाँघों तक ही था. उसकी गुलाबी रस से भरी हुई टांगें ललचा रही थी.
श्वेता के एक इशारे पर मैं उसके पास गया.
श्वेता ने मुझे अपनी तरफ खींचा और मेरे से लिपट गई. मुझे श्वेता के उभरे हुए सीने का दबाव महसूस हुआ. श्वेता ने कसकर पकड़ा मुझे और मेरे मुंह के पास अपनी खुशबूदार सांसें छोड़ दी. मैं नशे में आ गया. श्वेता ने इसके बाद और दो तीन बार अपनी साँसें मेरे मुंह पर छोड़ी और मेरे गालो को ऐसा चूमा मैं अपने होश खो बैठा. श्वेता ने यह देखकर एक एक कर के मेरे कपडे खोलने शुरू कर दिए. जब मैं सिर्फ अपने अंडरवेयर में रह गया तो उसने खुद को मुझ से अलग किया और साफे पर अपनी गुलाबी रस भरी टांगें फैलाकर बैठ गई. श्वेता ने मुझे अपनी टांगों की तरफ ईशारा किया. मैं खुद को रोक नहीं सका. मैंने श्वेता के नंगी बुलाबी चिकनी रस भरी टांगों को चूमना शुरू किया. जब मैं उसकी जांघों तक पहुंचा तो मैंने देखा  कि श्वेता की जांघें गज़ब की मांसल और गदराई हुई थी. मैंने अपने होंठों उन जांघों में भरे हुए ज्यूस को पीने के लिए लगा दिए. पांच मिनट बाद श्वेता की जांघें मेरे गहरे चुम्बनों से जगह जगह लाल हो गई. अब हम दोनों अपना होश खोने लगे थे.
मैंने अब श्वेता को सिर्फ ब्रा और पेंटी में कर दिया. श्वेता सेक्स की देवी लग रही थी. एक एक अंग का  हिस्सा तराशकर बनाया हुआ था.
मैं और श्वेता अब पलंग में एक साथ लेटे हुए थे. कुछ देर तक चुम्बनों का दौर चला. बाद में श्वेता ने मेरा अंडरवेयर और खुद के ब्रा-पेंटी को उतर दिया. मैंने श्वेता के निचले हिस्से को देखा. एकदम गुलाबी रंग का चिकना संगमरमरी स्थान. मुझे ललचाने लगा. मैंने अब धीरे से अपने लम्बे और कड़क होते हुए गुप्तांग को श्वेता के उस चिकने साफ सुथरे हिस्से में घुसाने लगा जिसके लिए श्वेता तरस रही थी. दो मिनट के बाद हम दोनों अपने निचले हिस्सों की मदद से आपस में जुड़कर एक हो चुके थे. 
करीब आधा घंटा हम दोनों इसी तरह अलग होते रहे फिर जुड़ते रहे. जब सेक्स की सीमा एकदम ऊपर आ गई तो मिने श्वेता के जननांग में अपने गुप्तांग से एक मलाईदार धार ऐसी छोड़ी कि श्वेता के साथ साथ मैं भी  एक गहरे नशे में आ गया. हम दोनों के होंठ आपस में सिल गए. श्वेता ने मरे होंठों का सारा रस और मैंने श्वेता के होंठों का सारा ज्यूस चूस लिया. देर दोपहर को  मैं श्वेता से अलग होकर घर लौट आया यह वादा करेक कि श्वेता रात मेरे साथ मेरे घर में गुजारेगी.
जब तक समीर वापस नहीं लौटा तब तक दिन में दो बार मैं और श्वेता संभोग करते रहे. चार दिनों के संभोग ने हम दोनों कप एक दूजे के लिए जैसा बना दिया.

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

हम दोनों को फिर से जवानी आ गई ==== पांचवां भाग 

एक तरफ शेखर और मेरी जिंदगी रंगीन हो गई थी उर दूसरी तरफ बेला की जिंदगी भी रंगीन हो गई थी. मैं इन दोनों के बीच में बेलेंस शुरू शुरू में तो कर सकी मगर बाद में मेर बेलेंस डगमगाने लगा. कभी रात को शेखर के साथ इतनी थकान हो जाती तो दोपहर को बेला के साथ मेरा जोश कम होता तो बेला शिकायत कर देती. मेरे जवाब से वो झल्ला जाती मगर फिर मैं उसे चूमकर शांत कर देती. इसी तरह चलता रहा. 

एक दिन मैं बेला के बेडरूम में एक किताब पढ़ रही थी जिसमे सेक्स की कई तस्वीरें थी और कई कहानीयाँ भी थी. तभी एक कहानी मैंने पढ़ी जिसमे दो सहेलीयां एक ही लड़के के साथ रहती है क्यूंकि वे दोनों सहेलियां एक दूसरे से अलग नहीं रहना चाह  रही थी. वो लड़का बाद में दोनों को एक साथ अपने साथ रहने के लिए बुला लेता है. इस कहानी में बाद में दूसरी लड़की को भी उस लड़के से और लड़के को दूसरी लड़की से प्यार हो जाता है और तीनों बाद में एक ही बेडरूम शेयर करना शुरू कर देते हैं. इस कहानी में बाद में तीनों एक साथ किस तरह सेक्स करते हैं यह बहुत ही उत्तेजित करने वाले तरीके से बताया गया था. इस कहानी में कई ऐसी तस्वीरें भी थी जिस में तीन लोग ( एक मर्द और दो औरतें ) एक साथ सेक्स करते दिखाई दे रहे थे. मैं कहानी पढ़ते पढ़ते खुद को और  बेला को दो सहेलीयां और शेखर को वो लड़का समझने लगी. ऐसा सोचते सोचते मेरे दिल में यह ख़याल भी आ गया कि बेला की स्थिति वैसी ही है. वो अब मेरे बिना नहीं रह पा रही है. मुझे भी बेला बहुत पसंद थी और उसका बिस्तर में साथ बहुत ही मीठा लगने लगा था. विशेषकर उसके बूब्स के साथ खुद के बूब्स का सहलाना मुझे किसी दूसरी दुनिया में पहुंचा देता था. 
मेरे मन में आया कि अगर बेला हमारे साथ ही रहने लगेगी तो बहुत सही हो जायेगा. बस शेखर को ही मनाना पड़ेगा. शेखर वैसे भी बेला को कई बार थेंक्स कहते रहते थे कि तुम ने हम दोनों की दुनिया बदल दी है. मैंने सोचा यह बात मदद करेगी बेला को हमारे साथ रहने में.
मैंने एक रात को मौका देख शेखर को सब बात बता दी. शेखर एक बार तो भयंकर गुस्सा हो गए मगर बाद में मेरे दिल को चोट ना पहुंचे मुझसे पुछा " जानूं, ये सब तुम अपने दिल की आवाज से कह रही हो या बेला के हिसाब से!" मैंने जवाब दिया " मैंने अपने दिल के अन्दर जो ख़याल आया उसी हिसाब से मैंने कह दिया है. बेला की तड़प को नहीं देखा जा सकता मुझ से. मैंने पिछले पांच छह दिन से लगातार इस बात को लेकर सोचा है और फिर फैसला किया है." शेखर बोले " अगर बेला का पति आ गया तो!" मैंने कहा " बेला को उसके आने के आसार नहीं लग रहे . उसका पति अब उसे ख़त भी नहीं लिखता और ना ही बेला के ससुराल वाले उस से मिलने आते हैं." 
शेखर ने मेरे गाल चूमे और बोला " मगर तुम बेला को सहन कर पाओगी जब वो हम दोनों के साथ रहेगी तो?"
मैंने जवाब दिया " मैंने और बेला एक दूसरे के बहुत करीब आ चुके हैं शेखर. हम में आपस में इतनी अंडरस्टेंडिंग है  कि हम दोनों एक दूसरे को लेकर कभी अलग अलग सोच नहीं रखेंगी और कोई जलन वाली बात हो ही नहीं सकती. मगर तुम को किसी बात का बुरा ना लगे."
शेखर ने मेरी सब बातें बहुत  ध्यान से सुनी और दो दिन का समय माँगा जो मैंने शेखर के होंठ  चूमकर दे दिया.
अगले दिन दोपहर को बेला मेरे घर पर थी और हम दोनों पलंग में एक साथ सो रही थी. मैंने बेला को उस कहानी से लेकर, मेरे कई दिन तक सोचने और बाद में शेखर को सब बताने और शेखर का दो दिन का समय मांगने तक की सारी बात बता दी. बेला मुझे देखती रही कितनी ही देर तक. बाद में बेला ने मुझे कसकर बाहों में लिया और  बोली " मेरे लिए आपने जो सोचा  है वैसा शायद आज तक दुनिया में किसी ने नहीं सोचा होगा. मैं वादा करती हूँ कि अगर मैं आप दोनों के स्थ रहने आई तो मैं आप दोनों के बीच कभी दीवार नहीं बनूँगी." मं बेला की बात से बहुत खुश हुई.
दो दिन बाद शेखर ने मुझे बेला को हमारे साथ आने का कह दिया. मैंने बेला को यह खबर सुना दी. उसी दिन शाम बेला के घर का सारा सामान हम हमारे घर ले आये तीनों मिलकर. हम सभी रात को पहली बार एक ही पलंग पर सोने के लिए आये. मैंने शेखर को बीच में लिटाया , मैं और  बेला दोनों शेखर के एकदम करीब आकर उस से लिपटकर लेटी. पहली रात हमने कुछ  नहीं किया बस इसी तरह से सो गए.
अगले दिन शाम को मैं और बेला हमेशा की तरह साथ साथ थे. उस दिन गर्मी बहुत ज्यादा थी इसलिए हम दोनों सभी कपडे उतारकर बाथरूम में एक साथ फव्वारा चलाकर नहा रही थी. हमें समय का पाता ही नहीं चला क्यूंकि पानी में हमें बहुत मज़ा आ रहा था. आपस में लिपटकर लगातार एक दूजे के गीले जिस्म को चूमना मन को भा रहा था. 
शेखर आ गए. शेखर के पास हमेशा बाहर के दरवाजे की एक चाबी रहती है. वे दरवाजा खोलकर अंदर आ गए. हम नहीं दिखे तो उन्होंने सोचा शायद हम कहीं बाहर गए होंगे. वे हमेशा की तरह बाथरूम में नहाने के लिए जैसे ही मेरे बेडरूम में आये, उन्हें बाथरूम में फव्वारे चलने की आवाज सुने दी और साथ ही  मेरी और बेला ले नहाने के साथ साथ एक दूजे को चूमने से निकल रही सी सी और आह की आवाजें सुनाई दी. वे सब समझ गए. उन्होंने अपने कपडे उतारे और बाथरूम का दरवाजा खटखटाया. मैंने शेखर के आवाज सुनकर बेला से लिपटे हुए ही बाथरूम का दरवाजा खोल दिया. शेखर ने हम दोनों को पहली बार इस तरह से देखा. वो हम दोनों को देखने लगे. बेला ने मेरे होंठों को अपने गीले होंठों से चूमना जारी रखा. शेखर इस मुद्रा से बेहद उतेजित हो गए और हम दोनों के पास आ गए. मैंने और बेला ने शेखर को अपने साथ मिला लिया. हम दोनों ने शेखर को अब हर जगह चूमना शुरू किया. शेखर ने भी इसी तरह जवाब दिया. शेखर ने भी मुझे और बेला को बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया. हम तीनों ने इस के बाद फव्वारा बंद कर दिया. हम तीनों बाहर आ गए. मैं कुछ थकान महसूस करने लगी थी इसलिए सोफे पर बीत गई. शेखर ने बेला को अपने से लिपटा लिया और उसी सोफे पर आकर बैठ गए दोनों लिपटे हुए. शेखर ने मुझे अपने पास आने का इशारा किया मगर मैंने कुछ देर बाद आने का कहा. शेखर बेला के ऊपर लेट गए और बेला ने तुरंत अपनी टांगें फैला दी. पता नहीं क्यूँ मुझे उन दोनों को इस तरह से लेता देख बहुत अच्छा और मीठा लगा. थोड़ी देर की मेहनत के बाद शेखर बेला के जननांग के भीतर अपने कड़क और लम्बे और गरम हो चुके लिंग को घुसा चुके थे. मैं उन दोनों के पास जाकर लेट गई. शेखर ने मेरी तरफ अपना मुंह बढाया और मेरे होंठ चूम लिए. मैंने शेखर के बाद बेला के होंठ चूमे. शेखर बेला की मर्द्वाली प्यास बुझा रहा था. बेला को जबरदस्त मजा आ रहा था. वो बार बार मुझे और शेखर को चूमती और मुझे अपनी तरफ खींचकर अपने को चूमने को कहती. मैं बेला को चूम चूमकर उसके मजे को और बढ़ा रही थी. थोड़ी देर में शेखर ने बेला को आजाद कर दिया. बेला ने अपनी जगह मुझे लेटने को कहा.
अब शेखर मेरे ऊपर था और शेखर का लिंग मेरे जननांग में एकदम भीतर गहराई तक. अब बेला मेरे मजे को मेरे को चूमकर बढ़ा रही थी. जब हम दोनों ही थके तो अलग हो गए. कुछ देर तीनों आराम से वहीँ लेट गए. मुझे उस किताब में पढ़ी कहानी का एक सीन याद आ गया. मैंने शेखर  और बेला को वो सीन समझाया. हम सब तैयार हो गए.
मैं पलंग पर लेट गई और बेला को मेरे  ऊपर लिटा लिया. हम दोनों के बूब्स आपस में मिल गए. अब हम दोनों एक साथ अपनी टाँगें जितना हो सका फैला दी. शेखर खड़े रहे और खुद को हम दोनों की टांगों के बीच में फंसा लिया. अब शेखर के लिंग के सामने हम दोनों के जननांग खुले हुए थे. शेखर ने कंडोम लगा लिया और चिकने के बढ़ने से वो बारी बारी से हम दोनों के जननांगों के अंदर अपना लिंग डाल देते और हम दोनों एक साथ मजा लेने लगे शेखर के लिंग से. हम तीनों को खूब मजा आया इस सेक्स के तरीके से. जब हम तीनों ही उत्तेजित हो गए तो शेखर ने मेरे कहने से लिंग पर से कंडोम  हटा दिया. अब शेखर का लिंग मेरे और बेला के जनांगों के आपस में टच होनेवाली जगह के बीच में था., हम दोनों को एक साथ शेखर का लिंग आगे पीछे होता महसूस होने लगा. मुझे और बेला को बहुत गुदगुदी होने लगी. शेखर को भी यह तरीका बहुत ही जोरदार लगा. अब अचानक शेखर के लिंग में से जो मलाई बाहर आई तो उसका गेलापन हम दोनों को महसूस हुआ और ठंडक देने लगा. हम तीनों ने तय किया कि ये सेक्स करने का तरीका हम रोजाना अपनाएंगे..
बेला ने अब अपने पति को तलाक दे दिया है. हम तीनों एक साल से एक साथ रह रहे हैं. हर रोज सेक्स करते हैं. कभी दो तो कभी तीनों एक साथ. मिलजुलकर. कोई जलन नहीं है और तीनों ही बहुत खुश हैं.
मैं आपसे भी कहूँगी जिंदगी में एक बार इस थ्रीवे सेक्स का मजा जरुर लिजिय वरना सेक्स की जिंदगी अधूरी है. कामसूत्र भी यही कहता है. तो फिर आपको इसमें आपत्ति क्यूँ हो. हाँ मगर एक बात है...इस में औरत को ही आगे होकर दूसरी औरत को मनाना पड़ता है क्यूंकि किसी मर्द के कहने से दूसरी औरत कभी तैयार नहीं होती. ऐसा भी किया जा सकता है कि अप अपने पति से ऐसी पसंद पूछ सकती हो जिसे आप आसानी से पता सकती हो. मगर कीजिएगा जरुर कम से कम एक या दो रात के लिए. आपको जिंदगी में सेक्स का मजा पूरा तभी होगा वरना जिंदगी आखिर तक अधूरी रहेगी एक मर्द और दो औरतों के सेक्स बिना. 
हेप्पी थ्रीवे सेक्स.
आज ही से दूसरी औरत खोजना शुरू करो दोनों मिलकर और औरत तैयार रहे दूसरी औरत को मानाने के लिए. लाज शर्म भूल जाइए. वरना आप जिंदगी का सबसे हसीं लम्हा खो बैठेंगी. 
मिल जाओ तीन और 
कर लो सेक्सी जिंदगी रंगीन.







शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012


हम दोनों को फिर से जवानी आ गई ==== चौथा भाग 

बेला मुझे नए नए तरीके बताती सेक्स और ड्रेस के और मैं उन्हें अपनाते हुए शेखर के साथ खूब मज़े ले रही थी. एक दिन बेला के बताये अनुसार मैंने एक पतले कपडे की पारदर्शी चुन्नी ली, उसे गीला किया और फिर अपने जिस्म के सभी कपडे उतारकर उस चुन्नी को लप्रेट लिया और शेखर के सामने आ गई. मेरा शरीर का एक एक हिस्सा उस गीली चुन्नी में से झाँक रहा था क्यूंकि चुन्नी गीली होने की वजह से मेरे जिस्म पर चिपक गई थी. मेरे शरीर की सभी गोलाईयां दिख रही थी. शेखर पागल हो उठे. उन्होंने मुझे इतना चूमा कि मेरी सांस फूल  गई. शेखर ने चुन्नी को युहीं रहने दिया और मेरी टाँगें पकड़कर फैला दी और मेरे ऊपर लेट गए और अगले ही पल उनका लिंग मेरे जननांग में घुस रहा था. आज हम दोनों का मूड बहुत ही जवान हो गया था. आखिर में शेखर ने पिचकारी मेरे भीतर छोड़ दी. मैं थक कर चूर हो गई थी. शेखर मुझे पकड़कर मेरे होंठों को अपने होंठों से मिलाकर सो गए.
एक दिन बेला की तबियत खराब हो गई. उसे  तेज बुखार आ गया. मैं बेला के घर सारा दिन उसके पास बैठी रही. रात को जब वो सो गई तब घर आ गई. शेखर को जब पता चला तो उन्होंने कहा कि कल की रात अगर बेला की तबियत बराबर ना हो तो मैं उसी के घर सो जाऊ. बेला की तबियत कुछ ठीक हुई मगर मैंने शेखर के कहे अनुसार बेला को कह दिया कि मैं आज की रात तुम्हारे यहाँ रह जाउंगी. बेला खुश हो गई. 
रात को मैं और बेला एक ही पलंग पर सोई. कुछ देर बाद बेला मेरे करीब आकर मुझसे सटकर लेट गई. मैंने बेला के सर पर हाथ फेरना शुरू किया. बेला ने मेरे हाथ  पकड़ लिए. वो मुझ से लिपट गई. मैंने प्यार से बेला को गालों पर एक चुम्बन दे दिया. बेला ने वापस ऐसा ही जवाब दिया. मेरी जिंदगी में बाहर लानेवाली बेला के लिए मेरे मन में बहुत प्यार आने ् लगा. मैंने बेला के होंठों को धीरे से चूम लिया. बेला ने अब मेरे होंठों को चूमा. इसके बाद यह दौर आगे बढ़ने लगा. हम दोनों एक दूजे को गालों, होंठों, गरदन के नीचे यहाँ वहाँ चूमने लगे. बेला ने खुद के उर मेरे सारे कपडे उतार दिए. हम दोनों अचानक ही उत्तेजित हो गई. हमारी साँसे तेज चलने लगी. हम दोनों बार बार एक दूजे को और अधिक जोर से खुद की तरफ खींचने लगी, दबाने लगी. इस बीच हम दोनों बार बार होंठों से एक दूजे को चूमे जा रहे थे.
थोडा वक्त इसी तरह से बीता . फिर अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जननांग के अन्दर कोई झरना फूट रहा हो. मैंने अपनी टांगें दबाकर रोकने की कोशिश की. शायद ऐसा ही बेला को भी लगा. वो मुझ से लिपट गई. हम दोनों तड़पने लगी. हमारे दोनों के मुंह से आह, उई, सी सी की आवाजें आने लगी. बेला अचानक से ही उठकर मेरे ऊपर लेट गई. मैं चौंक गई. मैंने ऐसा कभी ना देखा था ना ही सुना था. बेला के बूब्स यानि की स्तन मेरे स्तनों के ऊपर सटकर चिपक गए. हम दोनों को हमारे बूब्स का इस तरह से एक दूजे से चिपकना बहुत अच्छा लगा. बेला का निचला हिस्सा मेरे हिस्से के ऊपर टच हो गया. बेला ने मेरे जननांग पर अपने जननांग से दबाव बढ़ाया और मुझे चूमने लगी. मैंने भी गरमजोशी से बेला को जवाब देना शुरू किया. बेला ने मेरी टांगों को फैला दिया और अपने निचले हिस्से को मेरी जाँघों के बीच फंसा दिया. अब हम दोनों के जननांग एक दूजे से एकदम सट गए. हम दोनों को एक मखमली अहसास हुआ. बेला ने दो चार बार अपने जननांग को मेरे जननांग पर धेरे धीरे रगडा कि मेरे अन्दर का झरना बहने लगा. इसी वक्त बेला के भीतर से भी शायद झरना बहरकर बाहर आ गया. हम दोनों को उस जगह बहुत ही गीला मलाईदार रस महसूस हुआ. हम दोनों अचानक जोर से तडपी और एक दूजे से लिपट गई. आज की रात हम दोनों के जीवन की एक अनोखी रात थी.
सुबह जब मैं घर लौटने को हुई तो बेला ने कहा " भाभी, तुम कभी कभी मेरे साथ इस तरह लेट जाना प्लीज. मेरी प्यास बुझ जायेगी. मैं रातों को बहुत तड़पती हूँ." मैंने बेला को एक चुम्बन दिया गरदन के नीचे और कहा " तुमने मेरे जीवन में फिर से जवानी लौटाई है. क्या मैं मेरी जान के लिए इतना भी नहीं करुँगी. सप्ताह में एक रात तुम्हारे साथ सो जाया  करुँगी." बेला बहुत ही खुश हो गई.
इसके बाद मैंने बेला के साथ अगले दो महीनों तक हर सप्ताह एक रात बितानी शुरू कर दी. बेला अब मेरे बिन नहीं रह पाती थी. जब भी समय मिलता वो मेरे पास आ जाती. धीरे धीरे ऐसा हो गया कि बेला जब भी मेरे घर आती या मैं उसके घर जाती तो बेला मुझसे लिपटकर ही बैठती.
मुझे ऐसा लगने लगा कि अब बेला का पति आयेगा तो ये मुझे किस तरह छोड़ेगी? 
अगले और आखिरी भाग में मेरा और बेला का यह प्रेम(?) हम दोनों को किस मोड़ तक ले गया यह बताउंगी. एक बिलकुल नए तरह का रिश्ता जो आपने शायद नहीं सूना होगा ऐसा रिश्ता बना , आपको बताउंगी. 

बुधवार, 25 अप्रैल 2012


हम दोनों को फिर से जवानी आ गई ==== तीसरा भाग

अगले दिन जब मैं बेला से मिली तो शेखर और मेरे बीच की रात भर की मस्ती उसे बता दी. बेला ने मुझे बाहों में लिया और बोली " भाभी जान, दो दिन की ट्रेनिंग में आपकी रातें तो रंगीन हो गई है. क्या क्या गुल खिल रहे हैं मजा आ गया सुनकर ही." बेला ने अपने बेडरूम में मुझे ले जाकर कुछ नए कपडे पहनने के लिए दिए. बेला ने कहा " भाभी ये तू पीस बिकनी है. एकदम छोटी ब्रा जिसे पहनने के बाद मेरे बूब आधे बाहर ही दिख रहे थे. मुझे बहुत शर्म महसूस हुई मगर बेला ने हौसला बढ़ाया. मिने जब पेंटी पहनी  तो मैं खुद को आईने में नहीं देख सकी. मेरे पीछे का हिस्सा करीब पूरा दिखने लगा था और आगे केवल मेरा ख़ास हिस्सा ही छुपा हुआ था. बाकी सब कुछ खुला था. मेरे उस हिस्से पर बाल थे इसलिए वे बाहर झाँकने लगे. बेला बोली " भाभी ये बाल सब हम कल हटा देंगे फिर देखना आप कैसा दिखती हो."  मैं अन्दर ही अन्दर शरमा रही थी इन कपड़ों में. मगर बेला ने मेरा साहस बढाए रखा. अब बेला खुद यही बिकनी पहनकर आई. बेला दुबली पतली थी इसलिए वो किसी सेक्स की देवी से कम नहीं लग रही थी. 
बेला और मैं एक बार फिर एक दुसरे से चिपक कर खड़ी थी. बेला ने एक अंगूर का गुच्छा लिया और उसमे से एक अंगूर खुद के मुंह में आधा डाला और मेरी तरफ अपना मुंह बढ़ा दिया. मैंने उस आधे अंगूर को अपने होंठों से दबा दिया. बेला ने उस अंगूर को मेरे मुंह में धकेल दिया . इसके पहले कि मैं उसे चबाने का सोचती बेला ने मुझसे मेरा मुंह खोलने को कहा. मैंने मुंह खोला तो बेला ने उस अंगूर को अपनी जीभ को मेरे मुंह में डालकर अपने मुंह में वापस ले लिया. मुझे यह अच्छा लगा. दो तीन बार हम दोनों ने ऐसा किया, बाद में बेला ने अंगूर को चबाया और मेरे मुंह में डाल दिया. मैंने उसे थोडा और चबाया और बेला के मुंह में डाल दिया. इस तरह हम दोनों काफी देर तक एक एक साथ साथ अंगूर खाती रही.
इसके बाद बेला ने फ्रिज से आइसक्रीम निकाली और हम दोनों सोफे पर आमने सामने आपस में एकदम करीब आकर बैठ गई. बेला ने आइसक्रीम एक चम्मच से मेरे मुंह में डाली  और एक चम्मच अपने मुंह में डाली और मेरे साथ होंठों का चुम्बन शुरू कर दिया. बेला कुछ ज्यादा उत्तेजित हो गई और मुझे बाहों में पकड़कर  सोफे पर ही लेट गई और मेरे साथ होंठों को चूमना जारी रखा. मैंने बेला के मुंह से आती आह , उई, और सी सी की आवाजों से यह अंदाजा लगाया कि वो इतने दिनों से अकेली सो रही है इसलिए उसकी आज यह हालत हो रही है. इसलिए मैंने भी बेला की इस हरकत को रोका नहीं. बेला कुछ बेकाबू हो गई और वो मुझे लगातार पकड़कर हर जगह मुझे चूमने लगी. फिर एकाएक बेला ने मुझ से अलग होते हुए कहा " माफ़ करना भाभी, मुझे आज सुबह से राकेश की बहुत याद रही थी इसलिए ऐसा हो गया." मैंने बेला को कहा " इसमें क्या माफ़ी. ऐसा हो जाता है जब किसी की याद आती है तो."
रात को मैंने शेखर के साथ अंगूर वाला किस किया. शेखर ने बहुत जोश और गर्मी के साथ मेरे साथ इस चुम्बन को काफी देर तक किया. शेखर बाद में इतना उत्तेजित हो गए कि उन्होंने एक एक कर मेरी साडी , ब्लाउज, पेटीकोट और ब्रा को खोलकर दूर फेंका और मेरे साथ पलंग में आ गए. शेखर ने मेरे होंठों को अपने होंठों से मिलाया और हम दोनों बहुत उत्तेजित होने लगे. मेरा जननांग अन्दर से तड़पने लगा. मैंने शेखर के लिंग को अपने हाथ से पकड़ा और अपने अन्दर डाल दिया. कुछ ही देर के बाद मैं और शेखर किसी दूसरी दुनिया में उड़ रहे थे. शेखर ने आज बरसों बाद मुझे सारी रात नहीं सोने दिया. आज की रात मैं और शेखर अपनी बरसों की भूख मिटाने में कामयाब हो गए थे. इसका सारा श्रेय बेला को था. 
अब अगले आठ दस  दिन बेला ने मुझे कुछ नया तो नहीं सिखाया मगर लगातार हम दोनों सेक्स को लेकर बाते करती और रात को शेखर के साथ सेक्स के बारे में बेला को बताती. बेला भी अपने पति राकेश के साथ सेक्स की सब घटनाएं बताती रहती. इस कहने सुनने के बीच कई बार हम दोनों एक दूसरे को बाहों में ले लेती. आपस में चूम लेती. कभी गाल तो कभी होंठों चूम लेती. कभी बेला के कहने पर कई बार हम दोनों बहुत ही कम कपड़ों में एक साथ बिस्तर में लेट जाती और सेक्सी बातें करती. दोपहर से कब शाम हो जाती पता ही नहीं चलता था. शेखर भी बहुत खुश रहने लगे थे. वे अब घर आते ही कई बार मुझे अचानक पकड़ लेटे और चुम्बनों की बरसात कर देते. मैं भी वैसा ही जवाब देती. हमरी जिंदगी जैसे बीस साल पीछे चली गई थी. बहुत अच्छा लगने लगा था. बेला भी मेरी राह देखती दोपहर को. वो मेरे जाते ही मुझ से लिपट जाती और नमस्ते की जगह एक होंठों का लंबा चुम्बन लेती.
अगले  भाग में मेरी , शेखर और बेला जिंदगी में आये सबसे बड़े बदलाव के बारे में बताउंगी. इस बदलाव की वजह से एक तूफ़ान आ गया था हम तीनों की जिंदगी में. इस तूफान के बाद हम तीनों अब कैसे रह रहे हैं वो आपको पता चलेगा.

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012


हम दोनों को फिर से जवानी आ गई ==== दूसरा भाग 

अगले दिन दोपहर के खाने के बाद ही मैं बेला के घर चली गई. बेला मेरे चेहरे से समझ गई कि कोई खुश खबर है. मिने बेला को बीती रात  की सब बात बता दी. बेला बहुत खुश हो गई. मैंने बेला को अपनी कमजोरी बताई . बेला ने कहा " भाभी, इसका इलाज भी मेरे पास है. आज मैं वो ही बताने वाली हूँ."  मैं खुश हो गई.
बेला ने और मैंने कल वाले ही कपडे पहन लिए. बेला ने मुझे बाहों में लिया और बोली " भाभी ऐसे सूखे होंठों को कौन चूमेगा. आओ मैं आपको कुछ बताती हूँ." बेला ने अपने पर्स में से लिपस्टिक निकाला  और गहरे लाल रंग से मेरे होंठों को रंग दिया मगर बाद में साफ़ कर दिया और कहा " लिपस्टिक के साथ चुम्बन मैं कल बताउंगी." .. उसने मुझे फिर बाहों में लिया और मेरे होंठों के एकदम करीब अपने होंठ लाते हुए बोली " स्वीट डार्लिंग, इन होंठों में ना जाने कितना गुलाब का जूस भरा हुआ है मैं नहीं जानता. अगर तुम अपने इन दोनों प्यालों को मेरे हवाले कर दो तो मेरी सब प्यास बुझ जायेगी" मैंने बेला से कहा " मगर बेला, मैं काँप जाती हूँ शुरू से ही जब शेखर मेरे होंठ चूमा करते थे. पता नहीं ऐसा क्यूँ  होता है. मुझे लगता है मेरी सांस बंद हो जाएगी." बेला बोली " भाभी, ऐसा कई के साथ होता है. इसका इलाज है पहले एक दूजे के होंठ को अपने होंठ से सिर्फ छूना और धीरे धीरे सहलाना. कुछ देर ऐसा करने के बाद फिर होंठों को होंठों पर रख दो. फिर धीरे धीरे होंठों से होंठों को थोड़ा दबाव और हटा लो. फिर दबाव बनाओ और फिर हटाओ. ऐसा करने से नशा बढ़ने लगेगा. बाद में एक दूसरे को कसकर बाहों में जकड़कर अपने अपने होंठों को पूरा फैला दो. इसके बाद धीरे धीरे आगे बढ़कर होंठों को होंठों से मिला दो और फिर चूमना शुरू कर दो. पांच सेकण्ड के बाद फिर होंठ दूर ले जाओ. पांच सेकण्ड रुको और फिर ऐसा ही चूमो. इस तरह ऐसा नशा आयेगा कि फिर इसके बाद ये पांच सेकण्ड एक मिनट में बदल जाएगा. भाभी असली नशा सेक्स का फ्रेंच किस यानि होंठों से होंठों के चुम्बनों से ही आता है. आप जितना होंठों से होंठों को चुमोगी ना उतना ही आपको उत्तेजना आएगी और आपको ऐसा लगेगा कि आपके बीतर कोई तरंग उठ रही है और आपके नीचले हिस्से में जल्दी ही कुछ बहने लगेगा." मैं बेला की बातें सुनकर मन ही मन रात के लिए योजना बनाने लगी. 
मैंने अब खुद ही अपने होंठ बेला के सामने फैला दिए. बेला ने जैसा बताया था . हम दोनों ने पहले एक दूजे के होंठों को छुआ, फिर थोड़ा सहलाया, फिर दबाव बढाया और बाद में धीरे धीरे थोड़ी थोड़ी देर के लिए चूमना शुरू किया रुक रूककर. बेला ने कहा वैसे ही मुझे नशा आने लगा. मेरे मुंह से आह, और सी सी की मीठी सी आवाज आने लगी. ऐसी ही आवाज बेला के मुंह से भी आने लगी.  मैंने और बेला ने होंठों के चुम्बनों का यह दौर करीब दस मिनट तक जारी रखा. मुझे इतना नशा आ गया कि मैं बेला की बाहों में झूम गई. बेला मुझे पलंगपर लिटाकर मेरी बाजु में लेट गई. मेरी धड़कन बेकाबू थी. शरीर पसीने पसीने हो रहा था. बेला ने मुझे अपनी बाहों में पकड़ा और मेरे गाल चूमकर बोली " आराम कर लो भाभी . इसे नशा कहते हैं सेक्स का." मैं मन ही मन बेला का बार बार शुक्रिया कर रही थी जिसने मुझे और शेखर को एक नयी सेक्स की सिंदगी दी थी.
बेला ने कहा " भाभी, कल मैं और अलग अलग तरीके बतलाऊंगी चुम्बनों के. कल आप एक नयी दुनिया में खुद को महसूस करोगी तमाम अलग अलग चुम्बनों के करने के बाद." इतना कहकर बेला ने मेरे होंठों पर अपने होंठ रखे और एक ही पल में मेरे होंठों को एकदम गीला कर दिया. बेला ने जैसा कहा था इस चुम्बन से मुझे ऐसा  लगा जैसे सच में मेरे अन्दर एक गीलापन हो रहा है. 
मैंने सोचने लगी कि मैं जो सीख रही हूँ बेला से वो तो ठीक है मगर बेला के साथ जो मैं कर रही हूँ वो कोई गलत तो नहीं है. मैंने बेला से ये पूछ ही लिया. बेला ने जवाब दिया " भाभी इसमें कुछ भी गलत नहीं है. दो औरतो का ऐसा करना स्वाभाविक प्रक्रिया है. कामसूत्र में भी लिखा गया है कि एक महिला को अगर सेक्स के बारे में कुछ सीखना हो तो अपनी किसी रिश्तेदार महिला या सहेली से सीखना चाहिए और आपस में दोहराना भी चाहिए. जब कामसूत्र जैसा ग्रन्थ जो कि हजारो साल पहले लिखा गया था, भी ऐसा कहता  है तो इसमें गलत कैसे हो सकता है. इतिहास में भी ऐसी कई घटनाएं लिखी गई है अलग अलग किताबों में कि राजा महाराजा अक्सर एक साथ दो दो औरतो को लेकर सोते थे. अपने पति के विदेशो में जाने के बाद कई औरतें अपनी सेक्स की भूख इसी तरह अपनी किसी महिला मित्र या रिश्तेद्र के साथ बरसो से मिटाती आई है. आप इतना मत सोचो कि ये गलत है. आप तो बस अपने जिस्म को जो अच्छा लग रहा है वो करती जाओ."  बेला के जवाब के बाद मेर मन हल्का हो गया.
रात को एक बार फिर मैंने ट्यूब टॉप और हॉट शोर्ट में थी. मैंने बेला से सखा गे चुम्बनों का तरीका शेखर के साथ अपनाया. मैंने शेखर के होंठों को अपने होंठों से उसी तरह से शुरू किया और थोड़ी देर के बाद मेरे और शेखर के होंठों आपस में मिल चुके थे और हम दोनों रुक रूककर एक दुसरे के होंठों का रस पी रहे थे. शेखर जबर्दस्त नशे में आ गए और करीब दो घंटों तक मुझे नहीं छोड़ा. शेखर ने मेरे सारे जिस्म को बहुत गर्मी से चूमा. शेखर जब भी मेरी गर्दन के नीचे के हिस्से को और मेरे कन्धों को चूमते तो मुझे बुत मजा आता. जैसा बेला ने कहा मैं शेखर से कहती जाती " और गरम चुम्बन दो मुझे शेखर डार्लिंग. मेरी गरदन को भिगो दो तुम. मेरे कन्धों में जितना रस भरा है वो सारी मिठास तुम पी लो आज." शेखर पर और नशा आ  जाता और वो और गर्मी से मुझे चूमने लग जाते. 
बेला ने आज मेरी इस रात को एक तरह से दूसरी सुहागरात जैसा कर दिया था. मुझे अब कल का इंतज़ार था अजब बेला मुझे अलग अलग चुम्बन सिखानेवाली थी. 






सोमवार, 23 अप्रैल 2012

हम दोनों को  फिर से जवानी आ गई ==== पहला भाग 

मैं और मेरे पति पिछले पच्चीस सालों से इस छोटे से शहर में रहते हैं. शादी के बाद पंद्रह -बीस  साल तक तो हम सेक्स में बहुत मजा करते थे. मगर बाद में धीरे धीरे हम सेक्स के मामले में ठन्डे होते गए. हमारे एक बेटी हुई. जिसकी हमने तीन साल पहले शादी कर दी. अब अकेलापम हमें खाने को दौड़ता. सेक्स में हम ठंडे हो गए तो और भी खालीपन लगता. मैं और मेरे पति बहुत   कोशिश करते मगर सेक्स को लेकर कोई उत्तेजना नहीं आती हम दोनों में. महीने में एकाध बार ही कोई इच्छा होती.
हमारी बिल्डिंग में दो मंजिले थी और हर मंजिल पर दो फ्लेट थे. एक दिन हमारे सामने वाले खाली फ्लेट में सामान आता दिखाई दिया. मैंने बाद में दरवाजे से बाहर देखा तो एक जवान लड़की दिखी. उसने बताया कि वो यहाँ रहने आई है. उसकी शादी हो चुकी है मगर उसके पति विदेश में नौकरी करते हैं. साल भर बाद उसे भी बुला लेंगे. उसका नाम बेला था. बेला बेहद खुबसूरत और छरहरी थी. ख़ूबसूरत तो मैं भी बहुत थी मगर दिल में यही था कि अब मेरी उमर हो गई है. इसी कारण खुद की सुन्दरता नहीं दिखाई देती थी मुझे. 
मेरी और  बेला की दोस्ती हो गई. मेरे पति शेखर भी खुश हुए कि मेरा दिल लगने लगेगा. हम दोनों रोज शाम की चाय एक साथ लेती और फिर शेखर के आने तक गपें लगाती.
एक दूजे की पसंद ना पसंद तक जल्दी ही हम दोनों को पता चल गई. कुछ दिनों में हम और आपस में खुलकर बाते करने लगी. फिर एक दिन मेरे मुंह से यह सब भी निकल गया हमारी सेक्स लाइफ के बारे में. बेला ने हैरानी से कहा " आप दोनों इतने ख़ूबसूरत हो फिर ऐसा क्यूँ?" मैंने सब कुछ डीटेल में बता दिया उसे. बेला उस दिन चुपचाप चली गई;

दो दिन बाद बेला मेरे साथ चाय पीते पीते मुझ से हम दोनों के सेक्स के सभी तरीके पूछे जो हम अपनाते थे. मैं पहले झिझकी मगर बाद में सब बता दिया.  बेला कुछ देर तक सोचती रही और बाद में बोली " भाभी , मैं आपको वो सब बातें बताउंगी जिस से आपकी सेक्स लाइफ फिर से रंगीन और जावानो जैसी हो जायेगी. हम कल से शुरुवात करेंगे." मैं बेला के जाने के बाद सोचती रही कि आखिर वो क्या बताएगी. सारी रात मैं अगले दिन की राह में सोई नहीं.
दोपहर को बेला ने मुझे अपने घर बुलाया . मैं बेला के बेडरूम में पहली बार गई आज. बेला के बेडरूम में एक कोने में कुछ किताबें रखी हुई थी  जो सेक्स रे रिलेटेड ही थी.सभी के कवर पर मर्द और उरतें कम से कम कपड़ों में लिपटे दिख रहे थे.. पलंग पर लाल रंग की चद्दर बिछी हुई थी. 
 बेला ने कहा " भाभी , मेरे नसीब में सेक्स पूरे एक साल बाद आयेगा. मैं इन किताबों से ही काम चलाती हूँ. बेला ने एक किताब ली और मुझे अपने पास बिठाकर उसके पन्ने पलटने लगी. एक पन्ने पर कोई लेख था. बेला ने कहा " भाभी, सबसे पहले हम इसी लेख से शुरू करते हैं. इसमें एक दूसरे को उत्तेजित करना सिखाया गया है." मं उन तस्वीरों को देखने लगी और साथ ही उस लेख को भी पढने लगी. फोटो देखते हुए कुछ अजीब सा  लगा मगर फिर सब शांत हो गया. मुझमे कोई उत्तेजना नहीं आई जैसा बेला ने कहा था. मैंने बेला को सब कहा . बेला मेरे एकदम पास बैठी हुई थी. बेला ने मेरे गले में अपने हाथ डाले और मेरे गालों से अपने गाल टच करते हुए बोली " आप इतनी ठंडी कैसे हो भाभी. इन फोटो को देखने के बाद तो मैं तकिया दबाकर और अपनी टांगों को आपस में रगड़कर सोती हूँ."  मैं कुछ ना बोली. क्यूंकि बोलने जैसा कुछ था ही नहीं. बेला ने अचानक मेरे गालों को चूमा और बोली " भाभी सेक्स के लिए गरम होना सीखो जैसा आप पहले होती थी." बेला का मेरे गाल चूमना मुझे थोड़ी सिहरन दे गया. 
अगले दो दिन मेरा बेला से मिलना नहीं हो सका क्यूंकि मेरे घर कोई रिश्तेदार आये हुए  थे. तीसरे दिन मैं खुद ही चाय बनाकर बेला के घर चली गई. बेला और हम चाय पीने लगे. बेला बोली " भाभी , मैंने कुछ सोचा है आपके लिए. कल रात मैंने टीवी पर एक अंग्रेजी फिल्म देखी थी . उसमे ऐसी औरतों को गरम होना बताया गया था जैसा आपका केस हैं. इस से आप भी फिर से सेक्स के लिए फ्रेश होना और गरम होना सीख जाओगी और मेरा भी अकेलापन कुछ हद तक पूरा हो जाय्गेया. " मैंने  चौंक कर उस  की तरफ देखा कि ये क्या कहना चाहती है. बेला ने मेरी तरफ मुस्कुराकर देखा और बोली " भाभी, इस तरह से भोली और ठंडी रहोगी तो कैसे आगे बढ़ेगी गाडी बिस्तर में मजा करने की. आओ हम शुरुवात करते हैं." 
बेला ने मुझे अपनी बाहों में भरा और बोली " आप ये समझो कि मैं आपके वो हूँ और हम सेक्स की शुरुवात कर रहे हैं. ओके रेडी." मैं मुस्कुराई और शर्मा गई. बेला ने मुझे अपनी बाहों में और जोर से जकड़ा और बोली " डार्लिंग इतना भी क्या शरमाना मुझ से. मेरी जान तुम तो आज मुझे कहीं का नहीं रखोगी इतना गज़ब ढा रही हो" मैं दूर होने लगी तो बेला ने मुझे अलग किया और बोली " भाभी, ऐसे कपडे नहीं पहनना है आपको रात को. आप छोटे छोटे कपडे पहना करो. जैसे एकदम छोटा स्कर्ट , स्पोर्ट्स ब्रा. वैसे सबसे सेक्सी टॉप ट्यूब टॉप होता है. मर्द एकदम से पिघल जाते हैं ट्यूब टॉप में महिला को देखकर. रुकिए मैं आपको ये दोनों ही लाकर पहनाती हूँ."  बेला ने मुझे एक बहुत ही छोटा सक्र्त पहना दिया और ऊपर एक गोल कपड़ा जिसे उसने ट्यूब टॉप जहा पहना दिया. मैंने जब खुद को आईने में देखा तो हैरान रह गई. मैं एकदम अलग लग रही थी. बेला ने अब खुद अपनी लम्बी कमीज उतारकर एक स्लीवलेस बनियान पहन ली और एक हाल्फ पेंट पहन लिया और मुझे फिर से बाहों में भर लिया और बोली "   डार्लिंग इतना भी क्या शरमाना मुझ से. मेरी जान तुम तो आज मुझे कहीं का नहीं रखोगी इतना गज़ब ढा रही हो.. इस हॉट स्कर्ट और ट्यूब टॉप में तुम किसी कातिल हसीना से कम नहीं लग रही हो. ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सामने रसमलाई है और मैं बहुत ही भूखा हूँ." मैं हंस पड़ी. तभी बेला ने मेरे गाल पर एक लंबा चुम्बन लिया. मैं सरसरा उठी. बेला ने मुझे और कसकर अपनी बाहों में जकड लिया और ट्यूब टॉप के कारण नंगे कन्धों और गले को हौले हौले चूमने लगी. बेला के नाजुक होंठ मेरे ऊपर असर करने लगे. बेला बोली " ऐसे ही शुरुवात होती है भाभी. कम से कम कपडे किसी भी मर्द की नीयत ख़राब कर सकते हैं. 
मैं बेला की इस बात को मन ही मन मान गई कि मैं अब रात को ऐसे ही कपडे पहनूंगी. मैं बार बार आईने में खुद को देखती तो हैरान हो जाती. मेरी नंगी गोरी टांगें बहुत सेक्सी दिख रही थी. उस पर से मेरा स्तनों के ऊपर का नंगा बदन और कंधे किसी अंग्रेजी फिल्म की हीरोइन से कम नहीं बता रहे थे. मैंने अपने आपको कभी ऐसा महसूस नहीं किया था जैसा आ कर रही थी. ये सब बेला का कमाल था.  मैं थोड़ी देर बाद घर लौट आई. बेला ने मुझसे कहा " हम लगातार ये ट्रेनिंग जरी रखेंगे भाभी."
रात को मैंने बेला के दिए वे दोनों कपडे पहन लिए और चद्दर ओढ़कर लेट गई. शेखर आये और मुझे चद्दर ओढा देखकर बोले " गर्मी के मौसम में तुमने चद्दर ओढ़ रखी है" मैंने शरारत से मुस्कुराकर कहा " तुम ही हटा दो अगर गर्मी है तो" शेखर थोड़ा रुके और फिर उन्होंने चद्दर खिंच कर दूर हटा दी. उन्होंने जैसे ही मुझे शोर्ट स्कर्ट और टीब टॉप में देखा उनकी आँखें फटी की फटी रह गई. मेरा आधा खुला हुआ गोरा चिकना बदन , मेरे ट्यूब टॉप के नीचे छुपे हुए स्तन जो अपनी गोलाई के कारण किसी बहुत बड़े रसगुल्लों की तरह नज़र आ रहे थे. मैंने अपनी टांगों को यहाँ वहाँ बेला के सिखाये अनुसार फैलाना शुरू किया. शेखर की आँखों से मुझे यह लगने लगा कि उनकी नीयत शायद कुछ कुछ डोल रही है. उन्होंने मुस्कुराकर कहा " ये नया अवतार कैसे " मैंने कहा " मैं वो ही हूँ, बस थोडा बहक गई हूँ" शेखर ने आगे बढ़कर मुझे बैठाया और फिर बाहों में भर लिया. मैंने तुरंत अपने गाल शेखर  के आगे कर दिए. शेख ने उन्हें चूमा. एक बार नहीं बार बार चूमा. मैंने मन ही मन बेला को धन्यवाद् किया. अब मैंने शेखर के गाल चूम लिए.   इन चुम्बनों का हम दोनों पर थोडा असर हुआ. मैंने अब शेखर की टी शर्ट उतार दी और शोर्ट भी उतार दिया. शेखर मुझे लेकर अपने लिपटा कर मेरे खुले कन्धों को बेतहाशा चूमने लगे. मुझे नशा आने लगा था. मैंने धीरे से ट्यूब टॉप बेला के बताये अनुसार नीचे खिंच लिया. मेरे स्तनों का उपरी गोल हिस्सा थोड़ा सा बाहर झाँकने लगा. शेखर ने एक ललचाई नज़र मुझ पर डाली और उन गोलाइयों को इतना जोर से चूमा कि मेरा सीना गीला कर दिया. हम दोनों इसी चुम्बनों के दौर से मदहोश हो गए. एक लम्बे अरसे के बाद आज हम दोनों को इतना नशा आया था. करीब आधे घंटे के बाद शेखर मुझे अपनी बाहों में भरकर पलंग में लेट गए और मेरी गर्दन के नीचे और खुले हुए सीने को काफी देर तक चूमते रहे. मुझे बहुत अच्छा लगा मगर मैं पता नहीं क्यूँ शेखर को चूम नहीं पाई और खुद को ही चुमवाती रही.  मैंने मन ही मन तय किया कि कल बेला से इसके बारे में बात करुँगी.

शनिवार, 21 अप्रैल 2012


ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है 
भाग पांचवां 

सुंदरा के लौट आने के बाद सब कुछ फिर से नोर्मल हो गया. अब आंटी को मेरे सुंदरा के साथ शारीरिक सम्बन्ध को लेकर कोई आपत्ति नहीं रही. कई बार जब आंटी को सेक्स की इच्छा नहीं होती तो मैं अपने कमरे में सुंदरा के साथ लेस्बियन सेक्स का मज ले लेती.

पहले कुछ दिन तो सब शांत थे. अगले दिन अंकल कहीं बाहर गए दूसरे शहर में दो दिन के लिए. आंटी ने सुंदरा को रात को रोक लिया क्यूंकि बरसात का मौसम था और रात को अक्सर लाइट्स चली जाती. इसी डर से हम तीन होंगे तो डर नहीं लगेगा इसलिए सुन्दरा रो रोक लिया. 
मैं और आंटी एक पलंग में सो रहे थे. सुन्दरा पास के सोफे में सो गई. आंटी ने कुछ देर बाद हम दोनों के कपडे उतराकर मेरे साथ सेक्स में लग गई. सुन्दरा अँधेरे में जो कुछ भी दिख रहा था देख रही थी. तभी अचानक बहुत ही तेज बारिश शुरू हो गई. बादल गरजने लगे और बिजलियाँ चमकने लगी. हम सभी घबरा उठे. मैं आंटी से जोर से कसकर लिपट गई. तभी अचानक लाइट्स चली गई. हवा भी तेज हो चलने लगी. सुन्दरा भी अब बहुत  घबरा उठी. आंटी समझ गई उसकी घबराहट को और उन्होंने सुंदरा को हमारे पलंग पर  बुला लिया. मैं और आंटी अब भी आपस में बिलकुल नंगे आपस में लिपटी हुई थी. सुंदरा और आंटी के एक तरह से मैं बीच में थी. मैंने अपना एक हाथ पीछे किया और सुन्दरा के सीने को खोजने लगी. जैसे ही मेरा हाथ सुन्दरा के जिस्म से टच हुआ सुन्दरा ने मेरे हाथ को जोर से दबाया और अपने उभारो के बीच में दबा दिया. 
आंटी  को कुछ देर बाद मेरी और सुंदरा के बीच हो रही हलचलों का पता चल गया. आंटी ने मुझे अपने से अलग किया और उठ गई और सुन्दरा के करीब जाकर धीरे से उसके ब्लाउज के बटन खोलने लगी. मैं हैरानी से आंटी को देखने लगी. सुंदरा ने अपना सीना ढीला कर आंटी को सहयोग किया. ब्लाउज के बाद आंटी ने सुन्दरा की चोली भी उतार  कर दूर रख दी. इसके बाद आंटी  ने सुंदरा के पेटीकोट का नाडा खोला और साडी के साथ दूर फेंक दिया. अब हम दोनों के साथ सुंदरा भी बिना कपड़ो के हो गई. आंटी वापस मेरे पास आकर लेट गई. मैंने सुन्दरा को अपनी तरफ आने का इशारा किया. अब मैं आंटी और सुन्दरा के बीच में थी किसी सेंडविच की तरह. आंटी ने मुझे अब सीधा  लेटने को कहा और अपनी एक टांग मेरी टांग पर रखकर मेरे गालो को चूमने लगी. सुंदरा को भी मैंने इसी तरह करने को कहा. सुन्दरा और आंटी की मजबूत मांसल टाँगे मेरे जिस्म में लहरें उठा रही थी. अब दोनों और पास आ गई इससे मेरा जिस्म उन दोनों के जिस्मो से पूरी तरह से जैसे कवर हो गया. हम सभी की सांसें आपस में टकराने लगी. मैं कभी आंटी तो कभी सुन्दरा के गालों को और होठों को चूमती. तीनों को मजा आने लगा. आंटी मेरे होंठों को चूम रही थी. जैसे ही आंटी ने चूमना बंद किया सुंदरा ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. आंटी अपनी बारी का इंतजार करने लगी. इस तरह दोनों बारी बारी से एक के बाद एक मेरे होंठों को चूमने लगी. एक बार आंटी के चूमते ही सुंदरा थोड़ा सा  पहले अपने होंठ मेरे तरफ ले आई. इस से उसके होंठ आंटी के गालों से टकरा गए. मेरे दिमाग में कुछ आया और मैंने तुरंत अपने होंठ इस तरह से आगे किये कि आंटी के गाल और सुंदरा के होंठ मेरे होंठों से छूने लगे. आंटी ने अपने गाल को पीछे किया और अपने होंठ मेरे और सुंदरा के होंठो के पास ले आई. सुन्दरा ने अपने होंठ थोड़े आगे बढाए. मैंने भी भी ऐसा ही किया. अब हम तीनों के होंठ एक दूजे के एकदम करीब आ गए. मैंने अपना मुंह पूरा खोल दिया. मेरी देखाया देखी आंटी और सुंदरा ने भी अपने अपने मुंह पूरी तरह से खोल दिए. फिर हमने अपने अपने होंठ एक दूजे से टच करवा दिए और हमारे तीनों के होंठ अब  आपस  में मिल गए. 
हमने अपने अपने होंठ खोले और एक दूसरे के होंठों को को चूमना शुरू कर दिया. हम तीनों पर ऐसा नशा छाया कि सभी एक दूसरे को कसकर पकड़कर तड़पने लगी. काफी देर तक ऐसा किया तो हम तीनों के अन्दर जोर से हलचलें शुरू हो गई. आंटी और सुंदरा ने अपनी अपनी जाँघों से मेरी जांघों पर दबाव बढ़ाना शुरू किया जिस से उनके भीतर के हलचलें काबू में आये. इस दबाव से मेरी हलचलें भी काबू में आने में मदद मिली. मगर कुछ ही देर के बाद ऐसा लगा हम तीनों को कि अब अन्दर से तीनों का ही बहाव बाहर आ जाएगा. सुंदरा ने मुझे अपने भीतर ऊँगली घुसाने को कहा. मुझे ऐसा करते देख आंटी  ने भी मुझसे मदद मांगी. मैंने अब अपनी एक ऊँगली सुन्दरा के और दूजी आंटी के भीतर घुसा दी. मैं बैठ कर ऐसा कर रही थी. मेरी हालत ख़राब हो रही थी कि मैं अपना बहाव किस तरह महसूस करूँ जो भीतर से आ रहा है. सुंदरा और आंटी ने एक साथ अपने हाथ मेरे जननांग के पास ले आई और मेरे अपनी हथेलियाँ मेरे जननांग पर रखकर दबाने लगी. मुझे यह बहुत अच्छा लगा. अगले ही पल सुंदरा ने एक आह भरी. उसकी जननांग में से गाढ़ी मलाई बाहर की तरफ आने लगी  और मेरी ऊँगली से टकराकर हम दोनों को लहरों में डूबने लगी. तभी आंटी ने भी के मीठी आवाज से मुझे लहर में बाँध दिया. मेरी दोनों उंगलियाँ गीलापन और जबरदस्त मीठापन महसूस करने लगी. आंटी और सुंदरा की हथेलियों के दबाव ने अब मेरी अन्दर की मलाई को बाहर ला दिया. हम तीनों अब एक बार जोर से तडपी और फिर शांत हो गई. 
बाद   में फिर से आंटी और सुंदरा मेरे ऊपर टंगे रखकर सो गई और  मैंने उन दोनों के साथ  होंठों और  गालों के साथ किस का दौर जारी कर दिया.  बाद में हम इसी मुद्रा में एक दूजे से लिपटी हुई सो गई.
सुबह जब हम उठी तो हम  तीनों ही बहुत खुश थी. आंटी ने मुझे कहा " चिकने तू हम को पाता नहीं किस दुनिया में ले जाकर छोड़ेगी. अब तो ऐसा लग रहा है कि हम तीनों रोजाना ऐसा ही करें." मैं बहुत खुश हुई. सुंदरा भी खुश हो गई. 
इसके बाद करीब दस बारह दिन में एक बार ऐसा मौका मिल ही जाता जब हम तीनों आपस में एक साथ लेस्बियन सेक्स करते.
हम तीनों अभी भी इसी तरह से एक साथ हैं. 
आखिर में आपको एक रात के फुल टॉप सेक्स की बात बता रही  हूँ.  उस रात मैंने अंकल से बचाकर छुपाकर सुंदरा को मेरे कमरे में रोक लिया. आंटी को पता था. मैं और सुन्दरा बिस्तर में थी. सुन्दरा ने खूब सारा मसाज आयल लगाकर मेरे सारे जिस्म केस खूब मालिश की और मेरे सारे बदन को तेल की चिकनाई से फिसलन भरा और चमकीला कर दिया. मैंने भी बदले में सुन्दरा के साथ यही किया. फिर बाद में हम दोनों अपने अपने फिसलन वाले नंगे जिस्मो को एक दूजे के साथ अलग अलग जगह टच करा कराकर जबरदस्त मजे करने लगी. उधर आंटी अंकल के साथ थोड़ी देर मजे लेने के बाद जब अंकल सो गए तो हमारे साथ आ गई. हम दोनों को ऐसी हालत में देख आंटी के मुंह में पानी आ गया. मगर वो थोडा थकी हुई थी. हम दोनों ने मिलकर आंटी के बदन की उसी तेल से जबरदस्त मालिश कर आंटी को ताज़ा कर दिया और नशे में ला दिया. फिर हम तीनों बारी बारी से शुरू हो गई. मुझे ऐसा लगा जैसे ये मेरी अब तक की सबसे मीठी रात है.
मसाज के तेल की फिसलन हम तीनों को पागल किये जा रही थी. उत्तेजना बढती जा रही थी. मेरे अन्दर तूफ़ान उठने लगा था. कुछ देर बाद मैं पूरी तरह से बेकाबू हो गई और पलंग पर तड़पने लगी. सुन्दरा ने मुझे अपने से लिपटकर मुझे जगह जगह चूमना शुरू किया. आंटी भी हमारे पास आ गई और वो भी मुझे सुन्दरा के साथ जगह जगह चूमने लगी. मेरी भूख मिटने लगी मगर उत्तेजना एकदम टॉप में पहुँचने लगी. आंटी ने कुछ सोचा और फिर सुन्दरा के जननांग को मेरे जननांग से टच कर दिया , मैं सुंदरा के ऊपर लेटी थी. अब आंटी ने अपनी ऊँगली सुन्दरा के जननांग में इस तरढ़ से डाली कि मुझे मेरे जननांग के आसपास गुदगुदी महसूस हुई.  
मेरी तड़प फिर भी कम नहीं हो रही थी. मुझे यह लग रहा था कि दोनों ही मुझे इतना चूमे, इतना दबाये कि मैं किसी झरने की तरह बहने लगूँ. आंटी और सुंदरा दोनों ही मेरी तड़प को समझ गई. आंटी ने सुन्दरा को सोफे की कुर्सी पर बैठने को कहा. फिर आंटी ने मुझे सुंदरा की गोद में इस तरह बिठाया कि मेरी पीठ सुंदर के उभरी हुई छातीयों से सट गई और मेरा और सुंदरा का मुंह आंटी  के सामने था. अब आंटी धीरे से आगे आई और सुन्दरा और मेरी टांगों को फैला दिया और अब हम दोनों के जननांग आंटी के सामने थे एक के ऊपर एक. अब आंटी ने धीरे से अपने निचले हिस्से हम दोनों के जननांगों से टच कर दिया और धीरे धीरे सहलाने लगी. तेल की  फिसलन से हम तीनों को जबरदस्त मज़ा आने लगा और मेरी हलचलें तेज होती चली गई. आंटी कभी मेरे तो कभी सुंदरा के होंठों को चूमती. मैं एक सेंडविच की तरह दो बड़ी बड़ी छातीयों के बीच गुदगुदपन  महसूस करने लगी.  आंटी के निचले हिस्से की जगह ने ऐसा नशा चढ़ाया के करीब दस मिनट की इस रगदन ने एक के बाद हम तीनों के अन्दर की मलाई क्रीम को बाहर बहा दिया. चूँकि हम तीनों के निचले हिस्से एक दूजे से बिलकुल सटे हुए थे तो उस गीलेपन का मजा हम तीनों को खूब आया और काफी देर तक इस मलाई क्रीम के साथ हम मालिश करती रही. बाद में आंटी और सुन्दरा ने अपनी अपनी जगहें बदली और यही शुरू रखा. आखिर में हम तीनों ने खड़े होकर एक साथ एक लम्बा फ्रेंच किस अपनी अपनी जीभ से किया और बाद में पलंग में एक दूजे के सह लिपटकर सो गई.
मैंने कहा था ना कि आप भी इस को पढ़कर अपने बहाव को रोक नहीं सकोगे.

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012


ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है 
भाग चौथा 

मैं आंटी और सुंदरा के साथ अपनी जिंदगी को मजे से जीने लगी. सारे दिन एक ही काम, मौका मिलते ही लेस्बियन सेक्स. मेरी जवानी निखरने लगी थी. आस पड़ोस के लड़के मेरे को देखते ही आहें भरते मगर मेरे दिल में कभी लडको को लेकर कोई उत्तेजना नही पैदा होती. 
सुंदरा बहुत खुश रहने लगी थी. उसकी सेक्स की भूख रोज मिट जाती थी.
एक दिन आंटी बाहर गई हुई थी. मैं सुंदरा के आते ही उसके साथ सेक्स करने के लिए तैयार हो गई कि अचानक अंकल घर में आ गए. सुंदर और मैं बाल बाल बच गयी. मगर हम दोनों बहुत उतावले हो गयी थी. इसलिए हम दोनों बाथरूम में चली गई. अंकल अपने कमरे में थे. बाथरूम में धोने के बहुत सारे कपडे रखे हुए थे. हम दोनों ने अपने अपने कपडे उतर दिए और उन धोने के लिए रखे कपड़ों को बिस्तर बनाया और लिपट गयी आपस में. आज सुंदरा बहुत उत्तेजित हो चली थी. वो बार बार मेरी ऊँगली पकडती और पाने जनांग में घुसा देती . जबकि मैं पहले दोनों के जननांगो को आपस में टच कराकर सेक्स पूरा करना चाह रही थी.मगर आखिर में जीत सुंदर के हुई. मैंने अपनी ऊँगली उसके भीतर घुसाई और लगातार अन्दर बाहर करने लगी. इस दौरान मैंने सुंदरा के होंठों को अपने होंठों से पूरी तरह सील दिया और अपनी जीभ से उसके मुंह की सारी मिठास अपने मुंह में खींचने लगी. इस तरह मैं भी अपनी भूख मिटाने लगी. कुछ ही देर बाद हम दोनों तड़पने लगी. मैंने अपनी दोनों जाँघों को आपस में मिलाकर खुद को कंट्रोल करने की कोशिश की. उधर सुंदरा भी अब बेकाबू होने लगी. फिर अचानक मुझे अपने भीतर एक गीलेपन का अहसास हुआ और मैं सुंदर के मुंह में अपनी जीभ से सारी लार उसके मुंह में डालकर उसके साथ जोर से लिपट गई. इतने में ही सुंदरा भी मलाई बहाने लगी और  हम दोनों सेक्स के अंतिम सुख में पहुँच चुकी थी. इस बीच अंकल उठ गए मगर बाथरूम तक आकर ये समझे कि मैं अकेली हूँ उसमे उन्हें कोई शक नही हुआ.
सुंदर अब पूरी तरह से मेरे साथ प्रेम करने लगी थी. जबकि आंटी मेरे और अंकल दोनों के साथ डबल मज़ा लेती थी. कई बार तो ऐसा होता कि आंटी अंकल के साथ सेक्स करने के बाद मेरे कमरे में ऐसे ही बिना कपड़ों के आ जाती मुझे नंगा कर मुझे अपने साथ लिपटा लेती. मुझे इस वक्त बहुत अच्छा लगता था क्यूंकि आंटी थकी हुई होती थी और उनका जिस्म एकदम ठंडा होता. ऐसे में मैं उनके होंठों को लगातार चुस्ती रहती जो मेरा सबसे पसंदीदा था. आंटी थकी होने के कारण कोई विरोध नहीं करती और अपने होंठ फैलाकर मेरे होंठों के हवाले कर देती और मैं उनके होंठों पर अंकल द्वारा ना चूसा हुआ सारा रस चूस लेती. बाद में मैं आंटी के उभरे सीने को खूब सहलाती और अपने दोनों बूब्स को उनके साथ टच कराकर फिर से उनके होंठों को अपने होंठों से मिलाकर सो जाती.
एक दिन रात को मैंने सुन्दरा को घर पर आंटी से बचाकर रोक लिया. रात को  मैं और सुंदरा दोनों मेरे कमरे में भरपूर सेक्स का मज़ा ले रही थी. आंटी अंकल से फ्री होकर मेरे कमरे में आ गई. हम दोनों को पता नहीं चल सका इस बात का. आंटी  ने हम दोनों को देखा तो गुस्से में आ गई. हम दोनों को खूब डांटा , अगले ही दिन आंटी ने सुन्दरा की छुट्टी कर दी. मेरा दिल टूट गया. मैंने आंटी को बहुत समझाया ,मगर आंटी ने मेरी एक नहीं सुनी. अगले चार पांच दिन हम दोनों में बिलकुल बोलचाल नहीं हुई और ना ही सेक्स. 
आखिर में आंटी से नहीं रहा  गया और उसने सुंदरा को फिर से बुला लिया. 
अगले भाग में आपको मैं बहुत ही उत्तेजित कर देने वाली सेक्स के बारे में बताउंगी. मेरा वादा है कि आप भी बहाव नहीं रोक सकोगे.

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है 
भाग तीसरा.

सब कुछ इसी तरह चलता रहा  मगर एक दिन सब कुछ पता चल गया घर में मेरे . हुआ ये के सभी घरवाले सुबह किसी शादी में गए हुए थे. मैं बहाना कर नहीं गई. मैंने सायरा को बुला लिया . मैं और सायरा बिना किसी कपड़ों के बेखौफ्फ़ बिस्तर में लिपटी हुई थी. मैं सायरा के उपर थी और अपने गुप्तांग को उसके गुप्तांग से टच करा कराकर मसाज कर रही थी. हम दोनों ने ढेर सारा क्रीम लगा रखा था अपने अपने गुप्तांगों के आसपास जिस से चिकनाई और भी बढ़ गई थी. मेरे पापा शादी में देनेवाली गिफ्ट घर पर ही भूल गए थे. वे उसी को लेने आये. वे गिफ्ट लेकर वापस बाहर निकलते वक्त मेरे कमरे की तरफ आकर मुझसे यह कहने वाले ही थे कि तुम खाना खा लेना , कि उन्होंने मेरे कमरे की खिड़की से मुझे और सायरा को इस स्थिति में देख लिया. पापा ने मम्मी को सब बतला दिया. मुझे खूब डांटा गया. मगर मैं इतनी लेस्बियन सेक्स की आदी हो चुकी थी कि उनसे वादा करने के बाद भी दो बार और पकड़ी गई लेस्बियन सेक्स करते हुए. खूब झगडा हुआ . मुझे घर छोड़ने को कह दिया गया.
मैं कुछ दिन सायरा के यहाँ रही. इस बीच मैंने एक दिन उसी मौसी के यहाँ जाकर यह पता लगाया कि वो आंटी जिनके साथ मैंने शादी के दौरान खूब मजा किया था वो कहाँ रहती है. मुझे आंटी का पता मिल गया. मैं एक दिन अपना बेग गले में डाले आंटी के सामने खड़ी थी. आंटी ने मुझे देखा और बोली " अरे चिकने तू यहाँ कैसे आ गया आ गई! " मैंने आंटी को सब कुछ बता दिया. आंटी का दिल पसीज गया. उन्होंने अपने पति से झूठ बोलकर कि मैं उनकी दूर के रिश्ते में भतीजी लगती हूँ, और बिना माँ-बाप की हूँ, अपने घर रख लिया. पहली ही रात आंटी मेरे पास आ गई. मैं आंटी की बाहों में थी. आंटी  ने मेरी प्यास बुझा दी.
अब लगभग हर रोज़ दिन में कम से कम दो बार तो मैं और आंटी नंगे बदन लिपटी रहती कुछ देर तक. मेरा आंटी  के साथ रिश्ता दिन बा दिन गहरा होता जा रहा था.
आंटी के यहाँ काम करनेवाली बाई काम छोड़कर चली गई तो आंटी ने दूसरी बाई रखी. मैंने जब इस बाई को देखा तो उसकी गरीबी पर दया आ गई. सांवला रंग , जबरदस्त कसा हुआ जिस्म और उभरा हुआ सीना और सेक्सी मुस्कान . मैंने दो तीन दिन में एक बार हिम्मत कर उस बाई जिसका कि नाम सुन्दरा था , गालों को चूम लिया. पता चला कि सुंदरा अकेली है, उसका पति शराबी है इसलिए सुंदरा उसे छोड़ चुकी है. एक दिन मैंने सुंदरा से अपने बदन की मालिश करने को कहा. मैं पलंग में सिर्फ ब्रा और  पेंटी में लेट गई. सुंदरा  ने मसाज शुरू किया. मुझे नशा चढ़ने लगा. मैंने अचनक सुन्दरा को अपनी तरफ खिंचा और उसके होंठों को अपने होंठों से चूम लिया. सुंदर हैरान रह गई. मैंने फिर एक बार अचानक से उसके होंठों को चूमा. सुंदर को शायद यह अच्छा लगा. मैंने सुंदरा को अपने बारे में सब कुछ बतला दिया. सुंदर ने मेरा साथ देने की बात कही और बोली " मैं भी अकेली  हूँ. हर रात तड़पती हूँ. तुम मेरा साथ देना."

एक दिन दोपहर को आंटी सो रही थी तब मैं सुंदरा के साथ मेरे कमरे में आ गई. हम दोन एक दुसरे की बाहों में थी. सुंदर मुझे चूमती और मैं सुंदरा को. फिर हम दोनों ने अपने सारे कपडे उतार दिए. सुंदरा मेरे हाथ को अपने जननांग के पास ले गई और मेरी ऊँगली को अपने अन्दर डाला. मुझे इशारे से सुन्दरा ने कहा कि मैं अपनी ऊँगली को अन्दर बाहर करूँ. मैं समझ गई कि ये एक औरत  की प्यास है. मैंने ऐसा ही किया. कुछ देर ऐसा करने के बाद सुन्दरा के जननांग के अन्दर से मलाई बाहर आकर बहने  लगी. सुन्दरा के चेहरे पर एक प्यास मिटने की मुस्कान आ गई. मैंने सुंदरा के होंठो को जोर से चूसा और मेरी प्यास बुझा ली.
अब  तो लगभग हर रोज मैंने और सुंदरा ऐसा ही करते. धीरे धीरे मैंने सुंदरा  के साथ जननांगों को आपस में मिलाकर सेक्स करना भी शुरू कर दिया. सुंदरा को भी यह सब अच्छा लगने लगा था. कई बार तो सुन्दरा मुझे पकड़ पकड़कर ऐसा नशा ला देती कि मैं सुंदरा की बाँहों  में 
कई  देर तक मदहोश लिपटी रहती.
मैं आंटी और सुंदरा के साथ खूब मजे में थी. मेरी भूख जितनी बढती दोनों मेरी भूख को उतना ही मिटा देती थी. आंटी तो अब शाम को मुझे लेकर बाथरूम में घुस जाती और हम दोनों नंगे बदन फवारे में लिपट जाते और काफी देर तक नशे में रहती. आंटी अक्सर अंकल के  जाने के बाद मेरे साथ ही नाश्ता करती थी. मैं नाश्ता करते वक्त सिर्फ ब्रा और पेंटी में हो जाती और  आंटी  की गोद में बात जाती. आंटी मुझे और मैं आंटी को चूमती और नाश्ता करती रहती. मैंने कई बार फ्रूट्स के टुकड़े अपने मुंह में लेकर आंटी के मुंह में डाल देती और आंटी भी बदले में ऐसा ही करती. एक बार हम दोनों ने केले इसी तरह से खाए और एक दूजे के मुंह में डालकर निकालते और फिर वापस ले लेते. . ऐसा नशा हो गया कि हम दोनों पागल हो गई थी.
अगले और चौथे भाग में मैं आपको मेरी जिंदगी की रंगीनियों के बारे में बताऊंगी कि किस तरह से हम तीनों ( आंटी, मैं और  सुंदरा ) 
अब एक नयी सेक्स की दुनिया में आ चुकी हैं.




बुधवार, 15 फ़रवरी 2012


ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है 

भाग - दूसरा   

कुछ दिन बाद मैं मम्मी के साथ दूसरे शहर गई मेरी मौसी के बेटे कि शादी थी. मैं अपनी मौसी के घर पहली बार गई थी और सब भाई बहनों से पहली बार ही मिली थी. मेरे मौसी की बेटी थी सरोज. मेरी हम उम्र और मुझसे भी बहुत ज्यादा खुबसूरत. मुझे वो पसंद आ गई पहली बार में ही देखते ही. मेरी नियत बिगड़ गई थी. मैं उसके साथ साथ ही रहने लगी और उस से सटाकर चलती और बात बात में उसका हाथ दबा देती. सरोज को मेरी नियत का पता नहीं चल सका था इसलिए वो सिर्फ मुस्कुरा देती.
इसी तरह रात हो गई. हम सभी साथ खाना खा रहे थे. मैंने एक रसगुल्ला सरोज के मुंह में रखा और ऐसा करते समय मैंने अपनी ऊँगली उसके जीभ से छुआ दी और  उस गीली ऊँगली को खुद चूस लिया. मुझे बहुत अच्छा लगा. 
रात को मैं चक्कर चलाकर सरोज के साथ ही लेट गई. हम दोनों ही उस कमरे में अकेली थी. कुछ देर इधर उधर की बातें की . फिर मैंने सरोज से कहा " सज्जू, तुम्हारा सीना उमर के हिसाब से अच्छा डेवलप हुआ है." सरोज शरमा गई. मैंने आगे कहा " लेकिन सीने से ज्यादा मुझे तुम्हारे होंठ लगते हैं. दुनिया भर का जूस भरा हुआ है इसमें." सरोज और ज्यादा शर्मा गई. मेरी बाते असर दिखला रही थी. चूँकि मौसी जिस शहर में थी वो काफी छोरा शहर था इसलिए लड़कियां ज्यादा तेज नहीं होती बल्कि शर्मीली और सेक्स में मामले में बहुत शांत और कम जानकारी वाली होती है. मैंने अचानक सरोज की गर्दन पर हाथ फिराया और बोली " इस गरदन को देखकर ऐसा लगता है जैसे इसे चूमते ही नशा चढ़ जाएगा." अब सरोज थोडा सा कसमसाई. मेरे लिए ये क़ाफ़ी था ईशारा. मैं उठकर बैठ गई. नाईट लेम्प जल रहा था इसलिए कमरे में उजाला था. सरोज ने नीचे एक पायजामा पहन रखा था. मैंने पायजामे की बांह को धीरे धीरे ऊपर उठाया और सरोज की नंगी , गोरी चिकनी टांग मेरे सामने थी. सरोज ने मुझे मना किया और पायजामा नीचे कर दिया. मैंने कहा " सज्ज्जू, रुक ना मैं ये देखना छः रही हूँ कि तुम्हारे सीने के उभार , होंठ या फिर तुम्हारी टाँगे ज्यादा खुबसूरत है और सेक्सी है." सरोज शर्माते हुए बोली " तुम ऐसी बात करती हो तो मेरे अन्दर ना जाने क्या होने लग रहा है. ऐसा ना करो दीदी." मैंने फिर एक बार सरोज के पायजामे की बांह को एकदम ऊपर खींच लिया. अब सरोज की जांघ चमक रही थी मेरे सामने. मैंने हाथो से सरोज की जांघ को सहलाया. सरोज कसमसाने लगी. मैंने कहा " सज्जू , तुम्हारी टाँगे तो गज़ब की चिकनी और गोरी है मगर तुम्हारी जाँघों में तो जैसे आम का रस भरा हुआ है. मैं चख लूँ क्या?" सरोज बहुत शरमाई और घबरा भी गई. वो उठकर बैठ गई. उसने कहा " दीदी, तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो? मुझे बहुत अजीब लग रहा है." मैंने जवाब दिया " सज्जू, यही तो मज़ा है. जब तक ऐसी उमर है मजे किये जाओ. मैं तो वहां मेरी कुछ सहेलियां है उनके साथ खूब मजे करती हूँ. इतना मज़ा आता है कि तुम्हें क्या कहूँ?" मुझे पता था ये सुनते ही सरोज पिघल जायेगी और मेरी हो जायेगी. यही हुआ. सरोज ने मुझसे पूछ ही लिया कि किस तरह से मजे करती हो. मैंने सरोज को सब कुछ बता दिया.
जैसे जैसे सरोज मेरी बाते सुनती गई वैसे वैसे उसकी हालत ख़राब होती गई. उसकी साँसें तेज चलने लगी. उसका सीना ऊपर नीचे तेजी से होने लगा. वो अपनी टांगें इधर उधर फैलाने सिमटाने लगी. मैंने मौका ताड़ा और सरोज को अपनी बाहों के जकड लिया. सरोज थोडा कसमसाई मगर अगले ही पल मैंने जब सरोज के गालो को चूमा तो सरोज अचानक मुझसे लिपट गई और बोली " ये क्या कर दिया. मुझे ना जाने क्या हो रहा है. मुझे घबराहट हो रही है. दीदी मुझे छोड़ना मत." अब मामला मेरी पकड़ में था. मैंने सरोज ओ दो चार बार और चूमा और फिर उसकी कमीज को बटन खोलकर उतार दिया. सरोज ने ब्रा पहन रखी थी. हकीकत में उसके उभार बहुत ज्यादा डेवलप थे उमर को देखते हुए. उसकी ब्रा बहुत ज्यादा कासी हुई लग रही थी. 
मैंने उसकी ब्रा को चूमा . सरोज सिहर गई. अब मैंने अपने कपडे उतारे और जाकर कमरे का दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया. सारी खिड़कियाँ भी बंद कर डी और कमरे की सभी लाईट्स जला ली. सरोज ने मुझे और मैंने सरोज के नंगे बदन को देखा. हम दोनों गोरी थी, चिकनी थी. सीने उभरे हुए. सिर्फ ब्रा और पेंटी में थी. दोनों के दिल जोर जोर से धड़कने लगे. मैंने सरोज को अपने से लिपटा लिया. मैंने सरोज को इस तरह जगह जगह चूमा कि वो तड़प उठी और हम अगले ही पल पलंग में आ गए. देर रात तक हमने अपने अपने दिल में जो चूमने लिपटने की भूख थी वो मिटाई और फिर थक कर सो गए.
सुबह  जब सरोज की आँख खुली तो वो मुझे देखकर शर्मा गई और बोली " दीदी, ये क्या है सब जो हम दोनों ने रात को किया?" 
मैंने सरोज को चूमा और बोली " क्या है वो तो पता नहीं सज्जू, मगर जिस बात से जिस्म शांत हो जाए वो बात करनी ही चाहिए." 
सरोज बोली " दीदी, हम परसों सुबह तक साथ हैं. हम ये फिर करेंगे." मेरा दिल ख़ुशी के मारे उछलने कूदने लगा.
अब लगभग सारे दिन ऐसा हुआ कि जब भी मौका मिलता हम दोनों किसी सुनी जगह , किसी खाली कमरे में चले जाते और एक दूजे को चूम लेटे या होठो का चुम्बन लेटे और वापस आ जाते जल्दी से ताकि किसी को कोई शक ना हो. सारे दिन ये चलता रहा. सरोज रात का बेसब्री से इंतज़ार करती रही. 
इस रात को भी हम दोनों ने काफी मजा लिया मगर आधी रात को हमें रुकना पडा क्यूंकि कुछ मेहमान आये और हमारे कमरे में एक और महिला सोने आ गई. हम अलग हो गए मगर रुक रुक कर चूमते रहे. 
सुबह जब हम उठे तो मैंने उस महिला को देखा जो हमारे कमरे में सोई थी. मैं उसे देखती ही रह गई. अच्छा खासा कद. बहुत गठा हुआ शरीर.   चूँकि चादर खिसक गई थी इसलिए उस का सीना दिख रहा था. मेरी आँखें फटी रह गई. इतना बड़ा सीना. करीब चालीस डी की साइज़ लगी मुझे तो. खुबसूरत भी बहुत थी. मैं शैतान बनकर उसे देखने लगी. तभी उनकी आँख खुल गई. मैंने मुस्कुराते हुए नमस्ते कहा. वो मुझे देखकर बोली " तुम इस कमरे में कैसे? ओह, तुम लड़की हो. मैंने तुम्हारे बाल देखकर सोचा की तुम लड़के हो हा हा " मैंने हंसकर कहा " आंटीजी अगर मैं लड़का होती तो आप क्या करती?"
आंटी  बोली बिलकुल मेरी तरह शरारती बनकर " तुझे पकड़कर लेट जाती और चूम लेती तुझे  चिकना समझकर. हा हा हा . बुरा ना माना मैंने मजाक किया था "
मुझे लगा जैसे आंटी का साथ आज रात हो ही जाएगा. मैं बोली " मैं समझ गई आंटी जी आप का मजाक ...मगर आप मुझे  चूम सकती हैं और लिपटा भी सकती है. आपकी मजबूत बाहों में आकर मुझे बहुत अच्छा लगेगा." आंटीजी  और भी शरारत होते बोली " अभी नहीं, कुछ देर बाद तुझे बतलाती हूँ मैं कितनी मजबूत हूँ. हा हा "
आज शादी थी इसलिए सभी जल्दी जल्दी नहा धोकर तैयार हो रहे थे. मैं भी नहाने चली गई. मैं जैसे ही नहाकर निकली तो देखा की वो आंटी भी नहाने के लिए मेरा इंतज़ार कर रही थी. मैंने एक तौलिया लपेट रखा था. मुझे देखते ही वो बोली " बिलकुल चिकने लड़के के जैसे  लग रही है तू." मैं मुस्कुरा दी. आंटी नहाने चली गई. मैं कपडे देखने लगी कि क्या  पहनना है . मैं उसी तौलिये में लिपटी कपडे निकाल रही थी कि इतने में आंटी नहाकर आ गई. वो भी तौलिया ही लपेटे थी. हम दोनों एक दूजे को देखकर मुस्कुरा दिए. आंटी मेरे बेहद करीब आकर खड़ी हो गई. हम दोनों के चेहरे बहुत करीब थे. नहाने के बाद की खुशबू साँसों में घुल रही थी. आंटी ने मुझे अपनी तरफ लिया और बाहों में भर लिया. कन्धों के थोडा नीचे तक हिस्सा नंगा था इसलिए वो हिस्से हम दोनों के आपस में चिपके तो बदन में सरसराहट होने लगी. मैंने बहुत ही शरारत से आंटी की तरफ देखा और बोली " क्या इरादा है इस चिकने को देखकर ?" आंटी ने उसी शरारत के साथ जवाब दिया " समय बहुत ही कम है मगर इरादा तो नेक बिलकुल नहीं है. चल आजा चिकने कुछ देर ही सही." आंटी ने मेरी गरदन के निचले हिस्से को ऐसा चूमा कि मेरा सर घूमने लगा. आंटी ने मुझे ऊपर उठा लिया और उठाये उठाये ही मेरे गालों और गरदन को चूमने लगी. मैंने भी जवाब में आंटी के गालों को चूमा. क्या भरवां गाल थे उनके किसी रसगुल्ले की तरह. आंटी के होंठ तो बिलकुल जलेबी की तरह रस से भरे हुए लगे. मैंने अपना मुंह खोला और उसे आंटी की तरफ बढ़ा दिया. आंटी ने मेरे होंठो को देखा और बोली " लगता है संतरे का जूस भरा है इनमे." मैंने कहा " मुझे तो आप के होंठ जलेबी जैसे भरे लग रहे हैं" आंटी ने जवाब दिया " तू जलेबी का रस पी और मैं संतरे का जूस पीती हूँ." आंटी ने अपने होंठ खोले और अब मेरे होंठों से इस तरह सिला दिए कि एक बंद गोला बन गया और हम दोनों अपने जीभ की मदद से एक दूजे के होंठों के रस को अपने मुंह में खींचने लगी. हम दोनों ने दो एक मिनट तक ही किया होगा कि किसी ने दरवाजा खटखटाया . आंटी बोली " ये कौन कबाब में हड्डी आ गया. अब तो अगले मौके में ही करना होगा सब कुछ." हम दोनों बहुत अनमने मन से अलग हुए और कपडे पहन ने लगे.
पूरी शादी में कभी सरोज तो कभी आंटी मुझ से नज़रें मिलाते ही सेक्सी मुस्कराहट दे देती. आंटी ने बहुत ही बढ़िया मेक अप किया था और गज़ब ढा रही थी. सरोज ने भी गुलाबी ड्रेस पहनी जिसमे वो बहुत सेक्सी लग रही थी. आंटी के लो कट ब्लाउज से उनकी दौलत जबरदस्त झाँक रही थी और मेरे मुंह में बार बार पानी आ रहा था. एक बार जब मैं आंटी के साथ ही चल रही थी तो आंटी ने अचानक अपने कंडों को इस तरह आगे कि तरफ आपस में करीब किया कि लो कट  ब्लाउज में उनके दोनों उभार आपस में और सट गए और पहले से अधिक बड़े नज़र आने लगे. मैंने सबकी नजर बचाकर अपने हाथ से उन्हें दबा दिया. मैं और आंटी हंसने लगी.
देर रात को शादी निपट गई और हम सभी सोने के लिए घर लौट आये .
मैं  कमरे में कपडे बदलने के लिए दाखिल ही हुई थी कि पीछे आंटी आ गई. आंटी ने दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया. मैं भागकर उनकी बाहों में चली गई. मैंने भी लिप्सटिक लगाईं हुई थी और आंटी ने तो गहरी गुलाबी रंग के लिपस्टिक लगाईं हुई थी. अब आंटी ने मेरे होंठों से खुद के होंठ सटा दिए. लिपस्टिक का रंग और उसकी मिठास और गीलापन मुंह में घुलने लगा. हमने शीशे में देखा तो दोनों के होंठो के आसपास गुलाबी लिपस्टिक का रंग फ़ैल गया था. 
मैं, सरोज और आंटी एक ही कमरे में लेटे. तीनो के बिस्तर जमीन पर थे. मैं सरोज और आंटी के बीच में लेट गई. अब सभी के मन में अरमान मचल रहे थे. कल हम सभी जुदा होनेवाले थे. सरोज ने मेरे हाथ अपने हाथ में लिए और अपने सीने की तरफ ले गई और खुद ही मुझे दबाव लाने के लिए जोर लगाने लगी. मैंने देखा कि आंटी को नींद आ गई थी. मैंने सरोज की तरफ मुंह घुमाया और हम दोनों शरू हो गए.  हम दोनों ने जल्दी ही ब्रा-पेंटी को छोड़ सभी कपडे उतार दिए. काफी देर हम दोनों युहीं लिपटे रहे, चूमते रहे. सरोज थक गई जल्दी ही और सो गई., मैंने अब आंटी की तरफ खुद को घुमाया और उनके ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए. जब सबसे उपरवाला बटन मैंने खोल रही थी जो कि सबसे कसा हुआ था तो आंटी की आंख खुल गई. मुहे देखकर वो भी मेरी ओर मूड गई. आंटी ने मेरे भी कपडे खोल दिए. मैंने आंटी की साडी उतर दी. अब मैं और आंटी  केवल ब्रा-पेंटी में ही रह गई. मुझे आंटी ने कसकर जकड लिया.
आंटी के गरम गरम बूब्स ( सीने ) मुझे दबा कर पागल किये जा रहे थे. कुछ देर कसमसाहट के दौर के बाद मैंने जब आंटी के होठों को चूमा तो आंटी ने मुझे अपने सीने को चूमने के लिए कहा. आंटी ने खुद ही अपनी ब्रा उतार दी. नाईट लेम्प की रौशनी में मैंने आंटी के सीने को देखा. एक एक बूब मुझे किसी रस से भरे गुब्बारे जैसा लगा. मैं आंटी के दोनों बूब्स ( स्तन या वक्ष ) को चूमने लगी. मैं कुछ ही देर में पागल हो गई. आंटी ने मेरे मुंह को अपनी सीने की गहराई में दबा दिया. इसके बाद आंटी ने मेरे सीने को चूम चूमकर गीला तो किया ही मैंने ध्यान से देखा वो गुलाबी लाल हो गए थे. आंटी ने मुझे अपने ऊपर लेटने को कहा. मैं आंटी के ऊपर लेट गई. उनके पहाड़ जैसे बूब या स्तन मुझे बार बार पागल कर रहे थे. आंटी ने अब धीरे से मेरी पेंटी उतार दी और खुद की पेंटी भी उतार दी. मैं पहली बार थोड़ा घबराई. अब मेरा निचला हिस्सा एंटी के निचले हिस्से से छू गया. मुझे हलकी मीठी चुभन महसूस हुई. मैंने अपना हाथ आंटी  के निचले हिस्से से छुआ दिया. आंटी के उस हिस्से पर बाल थे जो मुझे बहद अच्छे लगे. आंटी ने मुझे निचले हिस्से पर मेरे निचले हिस्से से दबाने और रगड़ने को कहा. मैंने वैसा ही किया. मेरा निचला हिस्सा जहाँ एकदम चिकना था आंटी के बाल थे. मुझे बहुत मजा आने लगा.
आंटी मुझे बार्बर दबाव बढ़ाने के लिए कहती और मैं दुगुने जोश से दबाव बढ़ा देती. कुछ देर बाद अचानक मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरे भीतर एक गीलापन हो रहा है और कुछ कुछ बाहर आने को है. मैंने अपनी टांगों को आपस में मिलाकर दबाया. आंटी  ने मुझे अपने सीने पर जोर से दबाकर पकड़ लिया और मेरे होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया. मुझे आज पहली बार इतना अनुभव हुआ था जिसमे सारा जिस्म रस में जैसे नहा लिया हो. 
सुबह होते ही सबसे पहले आंटी रवाना हो गई. आंटी ने ईशारा किया और मुझे एक कमरे में बुलाकर मेरे होंठों पर एक बहुत ही मीठा चुम्बन जड़ दिया और अपनी निशानी दे दी. 
दोपहर को हम लोग रवाना होने वाले थे. मैंने सरोज को भी निशानी के लिए उसके होंठों को जोर से चूमा ही नहीं बल्कि चूस ही लिया.
वापस घर लौटने के बाद कई दिन मुझे आंटी और सरोज याद आती रही. 
यहाँ आने के बाद फिर से रश्मि और सायरा की कंपनी मुझे मिल गई थी मगर सरोज और आंटी के साथ लेटने और मजा करने के बाद मुझे ऐसा लगने लगा कि हर बार कोई नया हो तो कितना अच्छा लगेगा. 
बस इसी बीमारी ने अब मुझे एक बहुत अलग और गलत रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया था.