बुधवार, 15 फ़रवरी 2012


ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है 

भाग - दूसरा   

कुछ दिन बाद मैं मम्मी के साथ दूसरे शहर गई मेरी मौसी के बेटे कि शादी थी. मैं अपनी मौसी के घर पहली बार गई थी और सब भाई बहनों से पहली बार ही मिली थी. मेरे मौसी की बेटी थी सरोज. मेरी हम उम्र और मुझसे भी बहुत ज्यादा खुबसूरत. मुझे वो पसंद आ गई पहली बार में ही देखते ही. मेरी नियत बिगड़ गई थी. मैं उसके साथ साथ ही रहने लगी और उस से सटाकर चलती और बात बात में उसका हाथ दबा देती. सरोज को मेरी नियत का पता नहीं चल सका था इसलिए वो सिर्फ मुस्कुरा देती.
इसी तरह रात हो गई. हम सभी साथ खाना खा रहे थे. मैंने एक रसगुल्ला सरोज के मुंह में रखा और ऐसा करते समय मैंने अपनी ऊँगली उसके जीभ से छुआ दी और  उस गीली ऊँगली को खुद चूस लिया. मुझे बहुत अच्छा लगा. 
रात को मैं चक्कर चलाकर सरोज के साथ ही लेट गई. हम दोनों ही उस कमरे में अकेली थी. कुछ देर इधर उधर की बातें की . फिर मैंने सरोज से कहा " सज्जू, तुम्हारा सीना उमर के हिसाब से अच्छा डेवलप हुआ है." सरोज शरमा गई. मैंने आगे कहा " लेकिन सीने से ज्यादा मुझे तुम्हारे होंठ लगते हैं. दुनिया भर का जूस भरा हुआ है इसमें." सरोज और ज्यादा शर्मा गई. मेरी बाते असर दिखला रही थी. चूँकि मौसी जिस शहर में थी वो काफी छोरा शहर था इसलिए लड़कियां ज्यादा तेज नहीं होती बल्कि शर्मीली और सेक्स में मामले में बहुत शांत और कम जानकारी वाली होती है. मैंने अचानक सरोज की गर्दन पर हाथ फिराया और बोली " इस गरदन को देखकर ऐसा लगता है जैसे इसे चूमते ही नशा चढ़ जाएगा." अब सरोज थोडा सा कसमसाई. मेरे लिए ये क़ाफ़ी था ईशारा. मैं उठकर बैठ गई. नाईट लेम्प जल रहा था इसलिए कमरे में उजाला था. सरोज ने नीचे एक पायजामा पहन रखा था. मैंने पायजामे की बांह को धीरे धीरे ऊपर उठाया और सरोज की नंगी , गोरी चिकनी टांग मेरे सामने थी. सरोज ने मुझे मना किया और पायजामा नीचे कर दिया. मैंने कहा " सज्ज्जू, रुक ना मैं ये देखना छः रही हूँ कि तुम्हारे सीने के उभार , होंठ या फिर तुम्हारी टाँगे ज्यादा खुबसूरत है और सेक्सी है." सरोज शर्माते हुए बोली " तुम ऐसी बात करती हो तो मेरे अन्दर ना जाने क्या होने लग रहा है. ऐसा ना करो दीदी." मैंने फिर एक बार सरोज के पायजामे की बांह को एकदम ऊपर खींच लिया. अब सरोज की जांघ चमक रही थी मेरे सामने. मैंने हाथो से सरोज की जांघ को सहलाया. सरोज कसमसाने लगी. मैंने कहा " सज्जू , तुम्हारी टाँगे तो गज़ब की चिकनी और गोरी है मगर तुम्हारी जाँघों में तो जैसे आम का रस भरा हुआ है. मैं चख लूँ क्या?" सरोज बहुत शरमाई और घबरा भी गई. वो उठकर बैठ गई. उसने कहा " दीदी, तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो? मुझे बहुत अजीब लग रहा है." मैंने जवाब दिया " सज्जू, यही तो मज़ा है. जब तक ऐसी उमर है मजे किये जाओ. मैं तो वहां मेरी कुछ सहेलियां है उनके साथ खूब मजे करती हूँ. इतना मज़ा आता है कि तुम्हें क्या कहूँ?" मुझे पता था ये सुनते ही सरोज पिघल जायेगी और मेरी हो जायेगी. यही हुआ. सरोज ने मुझसे पूछ ही लिया कि किस तरह से मजे करती हो. मैंने सरोज को सब कुछ बता दिया.
जैसे जैसे सरोज मेरी बाते सुनती गई वैसे वैसे उसकी हालत ख़राब होती गई. उसकी साँसें तेज चलने लगी. उसका सीना ऊपर नीचे तेजी से होने लगा. वो अपनी टांगें इधर उधर फैलाने सिमटाने लगी. मैंने मौका ताड़ा और सरोज को अपनी बाहों के जकड लिया. सरोज थोडा कसमसाई मगर अगले ही पल मैंने जब सरोज के गालो को चूमा तो सरोज अचानक मुझसे लिपट गई और बोली " ये क्या कर दिया. मुझे ना जाने क्या हो रहा है. मुझे घबराहट हो रही है. दीदी मुझे छोड़ना मत." अब मामला मेरी पकड़ में था. मैंने सरोज ओ दो चार बार और चूमा और फिर उसकी कमीज को बटन खोलकर उतार दिया. सरोज ने ब्रा पहन रखी थी. हकीकत में उसके उभार बहुत ज्यादा डेवलप थे उमर को देखते हुए. उसकी ब्रा बहुत ज्यादा कासी हुई लग रही थी. 
मैंने उसकी ब्रा को चूमा . सरोज सिहर गई. अब मैंने अपने कपडे उतारे और जाकर कमरे का दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया. सारी खिड़कियाँ भी बंद कर डी और कमरे की सभी लाईट्स जला ली. सरोज ने मुझे और मैंने सरोज के नंगे बदन को देखा. हम दोनों गोरी थी, चिकनी थी. सीने उभरे हुए. सिर्फ ब्रा और पेंटी में थी. दोनों के दिल जोर जोर से धड़कने लगे. मैंने सरोज को अपने से लिपटा लिया. मैंने सरोज को इस तरह जगह जगह चूमा कि वो तड़प उठी और हम अगले ही पल पलंग में आ गए. देर रात तक हमने अपने अपने दिल में जो चूमने लिपटने की भूख थी वो मिटाई और फिर थक कर सो गए.
सुबह  जब सरोज की आँख खुली तो वो मुझे देखकर शर्मा गई और बोली " दीदी, ये क्या है सब जो हम दोनों ने रात को किया?" 
मैंने सरोज को चूमा और बोली " क्या है वो तो पता नहीं सज्जू, मगर जिस बात से जिस्म शांत हो जाए वो बात करनी ही चाहिए." 
सरोज बोली " दीदी, हम परसों सुबह तक साथ हैं. हम ये फिर करेंगे." मेरा दिल ख़ुशी के मारे उछलने कूदने लगा.
अब लगभग सारे दिन ऐसा हुआ कि जब भी मौका मिलता हम दोनों किसी सुनी जगह , किसी खाली कमरे में चले जाते और एक दूजे को चूम लेटे या होठो का चुम्बन लेटे और वापस आ जाते जल्दी से ताकि किसी को कोई शक ना हो. सारे दिन ये चलता रहा. सरोज रात का बेसब्री से इंतज़ार करती रही. 
इस रात को भी हम दोनों ने काफी मजा लिया मगर आधी रात को हमें रुकना पडा क्यूंकि कुछ मेहमान आये और हमारे कमरे में एक और महिला सोने आ गई. हम अलग हो गए मगर रुक रुक कर चूमते रहे. 
सुबह जब हम उठे तो मैंने उस महिला को देखा जो हमारे कमरे में सोई थी. मैं उसे देखती ही रह गई. अच्छा खासा कद. बहुत गठा हुआ शरीर.   चूँकि चादर खिसक गई थी इसलिए उस का सीना दिख रहा था. मेरी आँखें फटी रह गई. इतना बड़ा सीना. करीब चालीस डी की साइज़ लगी मुझे तो. खुबसूरत भी बहुत थी. मैं शैतान बनकर उसे देखने लगी. तभी उनकी आँख खुल गई. मैंने मुस्कुराते हुए नमस्ते कहा. वो मुझे देखकर बोली " तुम इस कमरे में कैसे? ओह, तुम लड़की हो. मैंने तुम्हारे बाल देखकर सोचा की तुम लड़के हो हा हा " मैंने हंसकर कहा " आंटीजी अगर मैं लड़का होती तो आप क्या करती?"
आंटी  बोली बिलकुल मेरी तरह शरारती बनकर " तुझे पकड़कर लेट जाती और चूम लेती तुझे  चिकना समझकर. हा हा हा . बुरा ना माना मैंने मजाक किया था "
मुझे लगा जैसे आंटी का साथ आज रात हो ही जाएगा. मैं बोली " मैं समझ गई आंटी जी आप का मजाक ...मगर आप मुझे  चूम सकती हैं और लिपटा भी सकती है. आपकी मजबूत बाहों में आकर मुझे बहुत अच्छा लगेगा." आंटीजी  और भी शरारत होते बोली " अभी नहीं, कुछ देर बाद तुझे बतलाती हूँ मैं कितनी मजबूत हूँ. हा हा "
आज शादी थी इसलिए सभी जल्दी जल्दी नहा धोकर तैयार हो रहे थे. मैं भी नहाने चली गई. मैं जैसे ही नहाकर निकली तो देखा की वो आंटी भी नहाने के लिए मेरा इंतज़ार कर रही थी. मैंने एक तौलिया लपेट रखा था. मुझे देखते ही वो बोली " बिलकुल चिकने लड़के के जैसे  लग रही है तू." मैं मुस्कुरा दी. आंटी नहाने चली गई. मैं कपडे देखने लगी कि क्या  पहनना है . मैं उसी तौलिये में लिपटी कपडे निकाल रही थी कि इतने में आंटी नहाकर आ गई. वो भी तौलिया ही लपेटे थी. हम दोनों एक दूजे को देखकर मुस्कुरा दिए. आंटी मेरे बेहद करीब आकर खड़ी हो गई. हम दोनों के चेहरे बहुत करीब थे. नहाने के बाद की खुशबू साँसों में घुल रही थी. आंटी ने मुझे अपनी तरफ लिया और बाहों में भर लिया. कन्धों के थोडा नीचे तक हिस्सा नंगा था इसलिए वो हिस्से हम दोनों के आपस में चिपके तो बदन में सरसराहट होने लगी. मैंने बहुत ही शरारत से आंटी की तरफ देखा और बोली " क्या इरादा है इस चिकने को देखकर ?" आंटी ने उसी शरारत के साथ जवाब दिया " समय बहुत ही कम है मगर इरादा तो नेक बिलकुल नहीं है. चल आजा चिकने कुछ देर ही सही." आंटी ने मेरी गरदन के निचले हिस्से को ऐसा चूमा कि मेरा सर घूमने लगा. आंटी ने मुझे ऊपर उठा लिया और उठाये उठाये ही मेरे गालों और गरदन को चूमने लगी. मैंने भी जवाब में आंटी के गालों को चूमा. क्या भरवां गाल थे उनके किसी रसगुल्ले की तरह. आंटी के होंठ तो बिलकुल जलेबी की तरह रस से भरे हुए लगे. मैंने अपना मुंह खोला और उसे आंटी की तरफ बढ़ा दिया. आंटी ने मेरे होंठो को देखा और बोली " लगता है संतरे का जूस भरा है इनमे." मैंने कहा " मुझे तो आप के होंठ जलेबी जैसे भरे लग रहे हैं" आंटी ने जवाब दिया " तू जलेबी का रस पी और मैं संतरे का जूस पीती हूँ." आंटी ने अपने होंठ खोले और अब मेरे होंठों से इस तरह सिला दिए कि एक बंद गोला बन गया और हम दोनों अपने जीभ की मदद से एक दूजे के होंठों के रस को अपने मुंह में खींचने लगी. हम दोनों ने दो एक मिनट तक ही किया होगा कि किसी ने दरवाजा खटखटाया . आंटी बोली " ये कौन कबाब में हड्डी आ गया. अब तो अगले मौके में ही करना होगा सब कुछ." हम दोनों बहुत अनमने मन से अलग हुए और कपडे पहन ने लगे.
पूरी शादी में कभी सरोज तो कभी आंटी मुझ से नज़रें मिलाते ही सेक्सी मुस्कराहट दे देती. आंटी ने बहुत ही बढ़िया मेक अप किया था और गज़ब ढा रही थी. सरोज ने भी गुलाबी ड्रेस पहनी जिसमे वो बहुत सेक्सी लग रही थी. आंटी के लो कट ब्लाउज से उनकी दौलत जबरदस्त झाँक रही थी और मेरे मुंह में बार बार पानी आ रहा था. एक बार जब मैं आंटी के साथ ही चल रही थी तो आंटी ने अचानक अपने कंडों को इस तरह आगे कि तरफ आपस में करीब किया कि लो कट  ब्लाउज में उनके दोनों उभार आपस में और सट गए और पहले से अधिक बड़े नज़र आने लगे. मैंने सबकी नजर बचाकर अपने हाथ से उन्हें दबा दिया. मैं और आंटी हंसने लगी.
देर रात को शादी निपट गई और हम सभी सोने के लिए घर लौट आये .
मैं  कमरे में कपडे बदलने के लिए दाखिल ही हुई थी कि पीछे आंटी आ गई. आंटी ने दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया. मैं भागकर उनकी बाहों में चली गई. मैंने भी लिप्सटिक लगाईं हुई थी और आंटी ने तो गहरी गुलाबी रंग के लिपस्टिक लगाईं हुई थी. अब आंटी ने मेरे होंठों से खुद के होंठ सटा दिए. लिपस्टिक का रंग और उसकी मिठास और गीलापन मुंह में घुलने लगा. हमने शीशे में देखा तो दोनों के होंठो के आसपास गुलाबी लिपस्टिक का रंग फ़ैल गया था. 
मैं, सरोज और आंटी एक ही कमरे में लेटे. तीनो के बिस्तर जमीन पर थे. मैं सरोज और आंटी के बीच में लेट गई. अब सभी के मन में अरमान मचल रहे थे. कल हम सभी जुदा होनेवाले थे. सरोज ने मेरे हाथ अपने हाथ में लिए और अपने सीने की तरफ ले गई और खुद ही मुझे दबाव लाने के लिए जोर लगाने लगी. मैंने देखा कि आंटी को नींद आ गई थी. मैंने सरोज की तरफ मुंह घुमाया और हम दोनों शरू हो गए.  हम दोनों ने जल्दी ही ब्रा-पेंटी को छोड़ सभी कपडे उतार दिए. काफी देर हम दोनों युहीं लिपटे रहे, चूमते रहे. सरोज थक गई जल्दी ही और सो गई., मैंने अब आंटी की तरफ खुद को घुमाया और उनके ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए. जब सबसे उपरवाला बटन मैंने खोल रही थी जो कि सबसे कसा हुआ था तो आंटी की आंख खुल गई. मुहे देखकर वो भी मेरी ओर मूड गई. आंटी ने मेरे भी कपडे खोल दिए. मैंने आंटी की साडी उतर दी. अब मैं और आंटी  केवल ब्रा-पेंटी में ही रह गई. मुझे आंटी ने कसकर जकड लिया.
आंटी के गरम गरम बूब्स ( सीने ) मुझे दबा कर पागल किये जा रहे थे. कुछ देर कसमसाहट के दौर के बाद मैंने जब आंटी के होठों को चूमा तो आंटी ने मुझे अपने सीने को चूमने के लिए कहा. आंटी ने खुद ही अपनी ब्रा उतार दी. नाईट लेम्प की रौशनी में मैंने आंटी के सीने को देखा. एक एक बूब मुझे किसी रस से भरे गुब्बारे जैसा लगा. मैं आंटी के दोनों बूब्स ( स्तन या वक्ष ) को चूमने लगी. मैं कुछ ही देर में पागल हो गई. आंटी ने मेरे मुंह को अपनी सीने की गहराई में दबा दिया. इसके बाद आंटी ने मेरे सीने को चूम चूमकर गीला तो किया ही मैंने ध्यान से देखा वो गुलाबी लाल हो गए थे. आंटी ने मुझे अपने ऊपर लेटने को कहा. मैं आंटी के ऊपर लेट गई. उनके पहाड़ जैसे बूब या स्तन मुझे बार बार पागल कर रहे थे. आंटी ने अब धीरे से मेरी पेंटी उतार दी और खुद की पेंटी भी उतार दी. मैं पहली बार थोड़ा घबराई. अब मेरा निचला हिस्सा एंटी के निचले हिस्से से छू गया. मुझे हलकी मीठी चुभन महसूस हुई. मैंने अपना हाथ आंटी  के निचले हिस्से से छुआ दिया. आंटी के उस हिस्से पर बाल थे जो मुझे बहद अच्छे लगे. आंटी ने मुझे निचले हिस्से पर मेरे निचले हिस्से से दबाने और रगड़ने को कहा. मैंने वैसा ही किया. मेरा निचला हिस्सा जहाँ एकदम चिकना था आंटी के बाल थे. मुझे बहुत मजा आने लगा.
आंटी मुझे बार्बर दबाव बढ़ाने के लिए कहती और मैं दुगुने जोश से दबाव बढ़ा देती. कुछ देर बाद अचानक मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरे भीतर एक गीलापन हो रहा है और कुछ कुछ बाहर आने को है. मैंने अपनी टांगों को आपस में मिलाकर दबाया. आंटी  ने मुझे अपने सीने पर जोर से दबाकर पकड़ लिया और मेरे होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया. मुझे आज पहली बार इतना अनुभव हुआ था जिसमे सारा जिस्म रस में जैसे नहा लिया हो. 
सुबह होते ही सबसे पहले आंटी रवाना हो गई. आंटी ने ईशारा किया और मुझे एक कमरे में बुलाकर मेरे होंठों पर एक बहुत ही मीठा चुम्बन जड़ दिया और अपनी निशानी दे दी. 
दोपहर को हम लोग रवाना होने वाले थे. मैंने सरोज को भी निशानी के लिए उसके होंठों को जोर से चूमा ही नहीं बल्कि चूस ही लिया.
वापस घर लौटने के बाद कई दिन मुझे आंटी और सरोज याद आती रही. 
यहाँ आने के बाद फिर से रश्मि और सायरा की कंपनी मुझे मिल गई थी मगर सरोज और आंटी के साथ लेटने और मजा करने के बाद मुझे ऐसा लगने लगा कि हर बार कोई नया हो तो कितना अच्छा लगेगा. 
बस इसी बीमारी ने अब मुझे एक बहुत अलग और गलत रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया था.