मंगलवार, 24 जनवरी 2012

ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है 

भाग - पहला  

मेरी उमर बीस साल की है. मैं अपने मां-पिताजी की अकेली बेटी हूँ. मुझे बचपन से ही लड़कों की तरह रहे की आदत है. लड़कों जैसे छोटे बाल , टी-शर्ट और जींस और अपनी सहेलियों के साथ भी लड़कों की तरह से बरताव करना. लेकिन करीब दो महीने पहले एक ऐसी घटना हुई जिसने मुझे बड़ी अजीब सी स्थिति में लाकर खडा कर दिया है. मुझे शुरू से लड़कों में कोई रूचि नहीं रही क्यूंकि मैं खुद उनके जैसी रहती आई थी. हम कोलेज की सभी सहेलीयां एक इंग्लिश फिल्म देखने एक साथ गई. फिल्म के एक सीन में हीरो हिरोइन को समुन्दर में किस करता है और फिर उसके सीने को मसलता है और उसके होंठ चूमता है. इस सीन से हम सभी पाँचों सहेलियाँ उत्तेजित हो गई . मेरे  पास रश्मि बैठी हुई थी. मेरा हाथ अचानक रश्मि की तरफ बढ़ा और उसके टी-शर्ट पर उस जगह पर गया जहां उसका सीना उभरा हुआ था. मैंने उसके उभार को दबा दिया. बदले में रश्मि ने भी मेरा हाथ जोर से पकड़ लिया.
उस दिन के बाद मैं जब भी रश्मि को देखती तो मेरी इच्छा होती कि मैं उसे बाहों में भर लूँ. उसे चुमुं. धीरे धेरे मुझे हर वक्त रश्मि ही दिखाई देने लगी. 
दो दिन बाद मेरी एक सहेली का जन्मदिन था. हम सभी सहेलीयां वहाँ थी. रश्मि  भी आई थी. मैंने रश्मि को देखा और शरारत से बोली " उस दिन फिल्म में मजा आया ना!" रश्मि ने आँख मारी और बोली " तुम ने बहुत शैतानी की थी उस दिन." मैंने कहा " आज फिर मेरी ईच्छा है कि मैं शैतानी करूँ." रश्मि ने मुस्कुराते हुए  कहा " ये कौनसा तरिका है शैतानी का ?" मैंने जवाब दिया " शैतानी का नहीं ये मजे करने का तरिका है मेरी जान , मेरी चिकनी. चल आ किसी कोने में." मेरे इतना कहते ही रश्मि मेरे साथ मेरी सहेली के घर के एक कमरे में आ गई. हम लोग जैसे ही करीब आने को हुए मेरी सहेली की मां कमरे में कुछ सामान लेने आ गई. हम बाहर निकल गए, मुझे अचानक बाथरूम दिखाई दिया.

मैं रश्मि को लेकर चुपचाप सभी की नज़रें बचाकर बाथरूम में चली गई. मैंने रश्मि के कुर्ती का बटन खोला और अपने हाथों से उसके सीने को दबाना शुरू कर दिया. रश्मि को अच्छा लगने लगा. अब मैंने रश्मि को बाथरूम की दीवार की तरफ धकेला और उसे मेरे सीने के दबाव से उसके सीने को दबाना शुरू किया. रश्मि ने एक आह भरी और मुझे बाहों में जकड़ते हुए कहा " तुम पागल कर डौगी यार. पता नहीं अन्दर क्या क्या होने लगा है." मैंने धीरे से रश्मि के गालों को अपनी जीभ निकालकर चूमा और गीला कर दिया. रश्मि ने मुझे बहुत जोर से दबाते हुए  पकड़ लिया और सिसकी भरने लगी. अब हम दोनों बेकाबू हो गई थी. बार बार एक दूजे को अपने अपने सीने से दबा रहे थे और मचल रहे थे. फिर अचानक बाहर केक काटने के शोर को सुनकर हम बड़ी मुश्किल से अलग हुए और पार्टी में ज्वाइन हो गए. 
इसके बाद काफी दिनों तक मुझे और रश्मि को कोई एकांत नसीब नहीं हुआ. मैं सारी सारी रात तड़पती और तकिये को दबाकर खुद को शांत करती. 
करीब एक महीने बाद एक बार फिर हम कुछ सहेलियां एक फिल्म देखने गए. मैं, रश्मि, सायरा  और दो दूसरी लडकीयाँ. मैं और रश्मि पास पास बैठी. एक सीन में जैसे ही हीरो हिरोईन ने बाँहों में भरकर एक दूजे को चूमा तो मुझसे रहा नहीं गया और मैंने रश्मि को उसके गालों को चूम लिया. बदले में रश्मि ने भी मेरे गालों को चूम लिया. अब तो लगभग हर ऐसे सीन पर हम दोनों आपस में एक दूजे के गालों को चूमने लगे.  सायरा ने हमें ऐसा करते दो तीन बार देख लिया मगर हम दोनों बेखबर थे तो पता नहीं चल सका.
फिल्म के ख़तम होने के बाद मैं रश्मि और सायरा एक ऑटो में बैठकर घर चल पड़े. सायरा ने अचानक मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा " ये तुम दोनों फिल्म में एक दूजे के साथ क्या क्या हरकतें  कर रही थी?" मैं बिलकुल नहीं घबराई और बोली " हम दोनों को इसमें बहुत मजा आता है तो हम करते हैं." उस दिन बात आई गई हो गई. 
करीब एक हफ्ते बाद एक दिन दोपहर को मैं घर में अकेली थी कि सायरा का फोन आया , वो कोई किताब मुझसे लेना चाहती थी मैंने कहा आकर ले लो . सायरा घर आई और मुझे अकेला देख मेरे करीब सटकर बैठ गई और धीरे से बोली " सन्नी , मुझे भी तुम्हारे साथ रश्मि के जैसे कुछ करना है. करो ना ." मैं बहुत ही खुश हो गई. मैं और सायरा बेडरूम में आ गए. मैंने सायरा के कुर्ती के सभी बटन खोले और फिर मैंने अपना टी शर्ट उतर दिया . मैं अब सिर्फ ब्रा में थी. मैंने सायरा के कुर्ती को भी उतारना शुरू किया . सायरा ने कोई आपत्ति नहीं की. अब हम दोनों अपनी अपनी ब्रा में ही थी. मैंने सायरा को बाहों में भर लिया और उसे चूमना शुरू कर दिया अगालों पर, गरदन पर औए नंगे सीने पर. सायरा मदहोश सी होने लगी. मैंने अपने गालो सायरा के होठों के सामने कर दिए. सायरा के होंठ कांप रहे थे. उसने मुझे गालो पर चूमा. मैंने सायरा को लिया और पलंग पर आ गई. अब हम दोनों पलंग पर लेट गए थे और लिपटे हुए थे. मैंने सायरा को चूमने के साथ साथ उसे नीचे के तरफ से दबाना शुरू किया. सायरा नीचे थी और मैं ऊपर. सायरा को मेरा दबाव बहुत सुहाना लग रहा था. घडी देखते ही सायर आदर गई और मां के लौटने के डर से तुरंत मुझे अलग हुई और घर चली गई.
अब मैं और सायरा जब भी अकेले होते वो मेरे घर आ जाती और हम दोनों मेरी घर के बेडरूम में लिपट जाते. ये सब करेब एक महीने तक चलता रहा. रश्मि को ये मौका इस महीने में एक बार भी नहीं मिल सका. एक दिन कोलेज में रश्मि ने मुझसे शिकायत भी की मगर मैंने अनसुना कर दिया. पता नहीं क्यूँ सायरा का जिस्म मुझे ज्यादा अच्छा और मीठा लगने लगा  था.
रश्मि ने कुछ खतरा भांप लिया और एक दिन दोपहर को ऐसा संयोग हुआ कि मैं और सायरा जब मेरे बेडरूम में बिस्तर में थी तब रश्मि मेरे घर पहुची. उसे मेरे घर का हर हिस्सा अच्छी तरह से पता था. वो ये जानकर कि मेरी मम्मी घर पर ही होगी, बाहर के रस्ते वो सीधे बालकनी में कूदकर मेरे बेडरूम की तरफ आ गौ. उसने बेडरूम के झरोखे से पर्दा हटाया और मुझे और सायरा को बिस्तर में एक दूसरे से लिपटे और चूमते पाया. आज भी हम दोनों ( मैं और सायरा ) सिर्फ ब्रा में थी और नीचे हम ने जींस पहन रखी थी. हम लगातार एक दूजे को चूम रही थी और मचल मचलकर अपने अपने सीनों को एक दूजे के सीने से दबा दबाकर मजे ले रही थी. 
रश्मि सारा माजरा समझ गई. उसे जलन होने लगी. उस  से रहा नहीं गया और उसने दरवाजा खटखटाया. मैंने चौंक कर देखा तो खिड़की में रश्मि को देखकर  मैं और सायरा हैरान रह गई. मैंने सायरा को इशारे से समझाया कि कोई खतरा नहीं है. मैंने उठकर दरवाजा खोला आ और रश्मि को अन्दर खिंच लिया और फिर से दरवाजा बंद कर लिया. इस से पहले कि रश्मि कुछ बोलती मैंने रश्मि को बाँहों में भर लिया और अपने जीवन में पहली बार किसी के होंठो को अपने होंठो से चूम लिया. रश्मि और मैं ऐसे तडपी जैसे कोई  बिजली का करंट लग गया हो.
रश्मि तो बेकाबू होकर पलंग पर बैठने लगी. मैंने रश्मि  को सहारा दिया मगर पलंग पर बैठाने के बाद भी उसके होठो को नहीं छोड़ा. 
अब मुझे और रश्मि को ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों बादलों में उड़ रही हों...दोनों को लगा जैसे ना जाने कितनी ही शकर हमारे मुंह में घुल गई हो. सायरा हम दोनों को इस तरह देखकर तड़प उठी. उससे रहा नहीं गया. उस ने आगे आकर हम दोनों को खुद से लिपटा लिया और हम दोनों के गाल चूमने लगी. 
मैंने अब रश्मि और सायरा दोनों के बारी बारी से गालों पर चूमा. फिर रश्मि ने मुझे और सायरा को चूमा. फिर सायरा ने मुझे और रश्मि को चूमा. कुछ देर तीनों ने एक दूजे के गलों को चूम चूमकर गीला तर कर दिया. मैंने अचानक रश्मि और सायरा को अपनी तरफ खिंचा और दोनों के मुंह करीब ले आई और दोनों के होठों के साथ साथ अपने होंठ भी मिला दिए. हम तीनों के होंठ आपस में मिल गए और शक्कर घुलने लगी हम सभी के मुंह में. लगातार चूमने और चूसने से हम तीनों के ही मुंह में से लार निकलने लगी और सभी के होंठो के चारों तरफ और गालों तथा गर्दन पर बहुत ही गीलापन फ़ैल गया. 
मैंने कभी रश्मि को तो कभी सायरा को अपने से चिपटाया और उन्हें जगह जगह दबाया और चूमा. हम तीनों ने ऐसा काफी देर तक किया. आखिर में हम सभी थक गई तो अपने कपडे पहने और अपने अपने घर चली गई.
इसके बाद भी मैं रश्मि और सायरा के साथ कभी अलग से तो कभी साथ साथ मिलती और इस तरह से अपनी अपनी भूख मिटाती.
मुझे धीरे धीरे लडकीयों में ही रूचि होने लगी. इसी तरह से करीब एक साल गुजर गया. अब मेरी इच्छाएं बढ़ने लगी. मैं कई बार ऐसा सोचती कि रश्मि और सायरा के अलावा भी कोई और मिले तो और भी मज़ा आयेगा.

शनिवार, 21 जनवरी 2012

ये कैसे हो गया
 
मैं दिली में अपनी पत्नि श्वेता के साथ रह रहा था. हम दोनों की शादी को सिर्फ एक महीना हुआ था. मेरे चाचा हृषिकेश में रहते थे. वे एक बार किसी काम से दिली आये. साथ में चाची भी आई. मेरे चाचा की उमर करीब पचास साल की है और चाची उनसे दस साल छोटी यानि की चालीस की. चाचा किसी सरकारी ऑफिस में काम करते थे और उन्हें एक ट्रेनिंग के लिए दिल्ली में दस दिन रुकना था. हमरे समस्या यह थी कि हमारा  घर बरसाती वाला था यानि कि केवल एक कमरा; रसोई और खुली छत. मैं और चाचा छत में अकेले  में सोनेवाले थे और  श्वेता तथा चाची अन्दर कमरे में. बरसात का मौसम था  मुझे यह डर सताने लगा कि अगर बारिश हो गई तो क्या होगा. मेरा डर सही निकल गया. अगले दिन शाम से ही बारिश होना शुरू हो गई. रात को अब एक छोटा सा कमरा और हम सोनेवाले चार जने. एक पलंग था जो कि डबल से छोटा था. उस पर चाची और श्वेता सो गए. मैं और चाचा नीचे सो गए. चाचा तो जोर जोर से खर्राटे बहरने लगे और चाची भी. श्वेता को बदमाशी सूझी. वो पलंग से उतरी  और मेरे पास आकर लेट गई. हम दोनों सावधान होकर केवल एक दूजे को चूमने लगे क्यूंकि मौसम बड़ा सुहावना हो रहा था. कुछ देर बाद चाची की आंख खुल गई. कमरे में नाईट लेम्प जल रहा था इसलिए चाची ने हम दोनों को देख लिया.
हो सकता है चाची की सेक्स लाइफ इस तरह की ना रही होगी क्यूंकि चाचा काफी बुज़ुर्ग जैसे ही थे हर चेज में; इसलिए चाची बड़े मजे ले लेकर हम दोनों को देखने लगी. हमें पता नहीं चला.
सवेरे चाची ने श्वेता को रात की बात बता दी. श्वेता मुस्कुराकर रह गई. लेकिन चाची बार बार श्वेता को सेक्स की बातें पूछने लगी. श्वेता को कुल मिलाकर सिर्फ ये पता चल पाया कि चाचा बहुत ही ठन्डे मर्द है और चाची बहुत कोशिश के बाद में भी उन्हें गर्म नहीं कर पाई है. श्वेता बहुत ही खुले विचारों वाली थी इसलिए उसने मुझे ये सब बता दिया. मैं भी तुरंत समझ गया कि आज तक क्यूँ चाचा के कोई औलाद नहीं है.
रात को श्वेता ने चाची को मजे दिखाने  के हिसाब से एक योजना बनाई. चाचा के खर्राटे शुरू हुए कि श्वेता ने आकर मुझे जगा दिया. मैं और श्वेता कमरे में आ गए. चाची पलंग पर सो रही थी. मैं और श्वेता जमीन पर लेट गए और हम दोनों के बीच चुम्बनों का दौर शुरू हो गया. चाची तुरंत जग गई. श्वेता ने शायद जान-बुझकर मुझे चूमते समय जोर की आवाज निकाली. चाची हम दोनों को देखने लगी. आज श्वेता को मालूम पड़ गया था कि चाची देख रही है लेकिन मुझे पता नहीं चल पाया था. श्वेता जानबूझकर उछल-उछलकर चूमने लगी. चाची पलंग पर लेटी लेटी बेकाबू होने लगी. धीरे धीरे कुछ ऐसा हुआ कि चाची तकिया पकड़कर पलंगपर मचलने लगी. ना जाने क्यूँ श्वेता को मजा आ रहा था. मैं श्वेता की आगोश में था और  श्वेता गरमा-गरम चुम्बनों से मुझे मदहोश किये जा रही थी. कुछ देर के बाद हम दोनों अलग हो गए और मैं बाहर आकर सो गया.
अगले दिन संयोग से मैं जल्दी घर आ गया. ऑफिस में काम नहीं था और बॉस भी कहीं  गया हुआ था. मुझे मौका मिला और मैं घर आ गया. घर आने पर पता चला कि श्वेता अपनी किसी सहेली के साथ बाहर गई है और चाची अकेली घर में है. मैं परेशान हो गया. क्या सोचा था और क्या हो गया. चाची ने मेरे लिए चाय बनाई. मैं चाय पी रहा था. चाची अचानक बोली " तुम्हारी जिन्दगी बड़े मजे से श्वेता के साथ गुज़र रही है. हमारे हालत देखो. एकदम से सूखी हुई हालत है." मैं चाची का कहा समझ गया क्यूंकि श्वेता ने मुझे सब कुछ बता दिया था. मैं कुछ ना बोला. तभी चाची फिर बोली " तुम मेरी इस सूखी हालत में हरियाली ला दो." मैं हैरान रहा गया यह बात सुनकर. इससे पहले कि मैं कुछ बोलता चाची ने अपनी सदी का पल्लू हटा दिया और मेरे सामने बालूज में से झांकते दो उभार थे. चाची ने अचानक आगे आकर मुझे अपनी बाहों में भींच लिया. मैं उसके स्तनों के उभार में दबाव से अच्छा महसूस करने लगा.
अचानक मेरे मन में एक शैतान जाग गया और मैंने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. चाची के साथ मैंने अपने सभी कपडे उतार दिए और चाची को लेकर पलंग में लेट गया. चाची के जिस्म को चूम चूमकर पूरी तरह से गुलाबी और गीला कर दिया. चाची अब नशे में आ गई और मैं जोश में. चाची को मैंने अपने लिंग से भेद डाला. चाची निहाल हो गई. उसने एक बार फिर कहा और मैंने एक बार फिर उसके जननांग को अपने कड़क ; लम्बे और गरमागरम लिंग से तरबतर कर दिया. मुझे भी भी बहुत अच्छा लगा.
अब मैं और चाची ऐसे मौके की तलाश में जुट गए की श्वेता कब बाहर जाए. लेकिन दो दिन तक ये मौका नहीं मिला. 
अब चाची के वापस जाने में सिर्फ तीन दिन बचे थे. मैंने दिमाग लगाया और श्वेता से कहा की मैं चाची को उनके एक रिश्तेदार से मिलवाने ले जा रहा हूँ. मैं चची को लेकर एक सस्ते होटल में आ गया. एक कमरा बुक किया और दोनों बिस्तर में नंगे होकर काम में लग गए.  मैंने करीब दो घंटों तक चाची को नहीं छोड़ा. आखिर में चाची ने ही कहा की अब वो और सहन नहीं कर सकेगी. शाम को हम वापस घर आ गए.
इसी तरह अगले दो दिन मैं उसी होटल में चाची को लेकर जाता और चाची के साथ सेक्स कर वापस आ जाता. अब कल सवेरे चाचा वापस जाने वाले थे . मैं और चाची उदास हो गए. चाचा कुछ सामान लेने बाजार गए . श्वेता सभी के लिए नाश्ता बना रही थी. न जाने क्या हुआ कि चाची ने अचानक मुझे ईशारा किया और मुझे बाथरूम के तरफ आने के लिए कहा. मैं जब वहाँ गया तो चाची अन्दर बाथरूम में चली गई. मैं समझ गया. मैं तुरंत अन्दर गया. चाची ने तुरंत अपनी साडी और पेटीकोट ऊपर उठा दिया. मैंने भी तुरंत अपनी लुंगी उठाई और खड़े खड़े ही अपने लिंग को चाची के जननांग में घुसाने लगा. चाची के चुम्बनों ने मेरे लिंग को कड़क और लंबा कर दिया. मैंने जोर जोर से झटके दे कर लिंग को काफी अन्दर तक पहुंचा दिया. तभी श्वेता की आवाज ने हमें चौंका दिया. मैंने चाची के होठों को जोर से चूसा और जल्दी जल्दी बाहर आ गया.
चाची चली गई लेकिन आज तक मुझे उनके साथ किये गए सम्भोग  और सेक्स की आज भी याद आती है . क्या पता अगला मौका कब मिलेगा.