शनिवार, 12 जून 2010

मुझे  मेरी  बीवी  से  बचाओ  : भाग  चार
 
हम तीनों के अलावा श्वेता के भी आने के बाद जिंदगी थोड़ी और मजेदार तथा शामें-रातें और भी रंगीन हो गई थी. सप्ताह में काम स काम दो मौके ऐसे आ जाते जब हम चारों एक साथ हो जाते. हम चारों का साथ लगभग दो माह तक रहा. पटेल साहब रिटायर हो गए और उनका परिवार सूरत चला गया. हम तीनों काफी दिन श्वेता को याद करके उदास रहे. लेकिन रंगीनीयाँ जारी थी. 
मणिनगर में सुमन के एक बहुत दूर के रिश्ते का भाई रहने आया. उसका घर हमारे घर से लगभग दस मिनट के पैदल रस्ते पर था. हम तीनो उससे पहली बार मिलने गए. सुमन के भाई और भाभी ने सोनी के बारे में पूछा तो मैंने उसे कह दिया कि सुमन को घबराहट की बीमारी के चलते हमने डॉक्टरों के कहने पर एक चौबीसों घंटे की नर्स रखी हुई है. ये हमारे साथ ही रहती है और हमारे परिवार की एक अभिन्न सदस्या है. सुमन के भाई हरीश की पत्नी  मंगला देखने में थोड़ी अजीब लगी. दिखने में अच्छी थी. सांवला रंग.मान को सुहावना लगता चेहरा. लेकिन वो कभी कभी अजीब तरह से हंसती औए बोलते बोलते छुप हो जाती. जब हम रवाना हुए तो हरीश से मैंने अकेले में मंगला के बारे में पुच ही लिया.  हरीश ने कहा कि मंगला का दिमाग थोडा काम विकसित है. वो सब समझती है. लेकिन कभी कभार उसका व्यवहार ऐसा हो जाता है. उसने सोनी से कहा " अच्छा हुआ आप मिल गई. अब आप इसका अपने तरीके से इलाज कर दीजिये. मुझ पर बड़ा एहसान होगा आपका.कहिये कब से भेजूं इसे.?" सोनी हक्का बक्का हो गई. ये कैसी उलझन आ गई? अब इसे क्या जवाब दें? अगर सच बतादें तो सारा खेल बिगड़ सकता है. मैंने हरीश से कहा " ये दोपहर में अकेली रहती है. आप ऐसा करो. सवेरे जाते वक्त इन्हें हमारे यहाँ छोड़ते जाओ और शाम को लौटते वक्त अपने साथ ले जाया करो. अकेलेपन से छुटकारा भी मिलेगा और सोनी इनका इलाज भी कर देगी." हरीश बहुत खुश हो गया.
रात को सोनी और सुमन मुझ पर भड़क गए. उन्होंने कहा कि अब हम तीनों ज्यादा आजादी से नहीं रह पायेंगे. मैंने उन्हें समझाया कि एक बार उसे आने दो. हो सकता है दो दिन के बाद हम हरीश से यह कहा देंगे कि सोनी इसका इलाज नहीं कर सकती. बस. मामला वहीँ ख़त्म हो जाएगा. दोनों मेरे जवाब से खुश हो गई.
हरीश अगले दिन ही मंगला को छोड़ गया. मैं उस दिन थोडा जल्दी चला गया था. दोपहर को तीनो कोई फिल्म देख रहे थेतभी फिल्म में एक दृश्य में हीरो हिरोइन को चूमता है और दोनों आपस में लिपटकर पलंग पर इधर उधर लोटना शुरू कर देते हैं. सुमन इसे देख अत्यंत ही उत्तेजित हो गई. उसने सोनी को बाहों में लिया और उसे चूमते हुए पलंग पर ले गई. फिर दोनों उस फिल्म कि तरह इधर उधर लोटने लगी. मंगला ने यह देखा तो वो घबराकर खड़ी हो गई. वो पलंग के पास आकर उन दोनों को देखकर उन्हें अलग करने कि कोशिश करने लगी. सुमन इतनी उत्तेजित हो गई थी कि उसने मंगला को ढका दे दिया. मंगला सोफे से जाकर टकराई और उस पर गिर गई. वो फिर लौट कर ई. सुमन ने उसे एक और धक्का दिया. अब मंगला रोने लगी. सोनी से रहा नहीं गया. वो मंगला के पास आई. उसने मंगला को अपने गले से लगाया. उसके गालों को थपथपाया और एक छोटा सा चुम्बन उसके गालों का ले लिया. मंगला अपने गालों के गीलेपन को पौंछते हुए मुस्कुराने लगी. सोनी ने उसे सोफे पर बिठा दिया. इसके बाद मंगला कुछ ना बोली.
शाम को उस घटना से मैं परेशां हो गया. अगले दिन हरीश उसे फिर छोड़ गया. मंगला ने आते ही सोनी से अपने गालों को चूमने और सहलाने को कहा. सोनी ने ओस कर दिया. मंगला खुश हो गई. इसके बाद नयी मुसीबत आ गई. उसने सोनी को कल के फ़िल्मी सीन को दोहराने कि जिद की. सुमन और सोनी ने बात बाहर तक ना जाए इसके डर से दोनो ने उसके साथ थोडा सा वैसा ही कर दिया. अब मंगला छुप हो गई. धीरे धीरे मंगला की यह रोज रोज की आदत सुमन और सोनी से सहन नहीं हुई. हमने अगले दिन हरीश से यह बहाना किया की हम तीनों कल कहीं जानेवाले हैं. उस दिन मैंने भी छुट्टी ले ली. दोपहर को हम तीनों काफी दिनों के बाद मिली इस आजादी का पूरा मजा ले रहे थे. हमारा संभोग चल रहा था. तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया. सोनी ने तुरंत कपडे पहने और जाकर दरवाजा खोला. मंगला खड़ी थी., उसने सोनी को भीतर धकेला और अन्दर आकर उससे लिप्त गई और बोली " मुझसे झूठ क्यूँ बोला. चलो अब मुझे चूमो. मुझे चूमो." सोनी ने उसे पीछे धकेलना चाह तो मंगला दौड़ते हुए बेडरूम में आ गई. मैं और सुमन आपस में लिपटे हुए थे और हम पूरी तरह से नग्न थे. वो हमें देख मुस्कुराई. उसने कहा " आप लोग परेशान ना हो. मैं आपको ज्यादा परेशान नहीं करुँगी. मैं पागल नहीं हूँ. एकदम ठीक हूँ और सामान्य हूँ. मैंने जानबूझकर ये नाटक कर रखा है. इसका कारण हरीश खुद है. वो बहुत कमजोर और ठंडा है. महीने भर में बड़ी मुश्किल से एक बार गरम होता है और उस पर भी मुझे अभी तक पूरी तरह से नहीं भेद पाया है. मैं परेशान हूँ. मैं कई बार खुद को नंगा कर बिस्तर पर लोटती हूँ. नंगी होकर खुद की ऊंगलीयाँ अपने जननांग में लेजाने की कोशिश करती हूँ. आप ही अब बताइये मैं क्या करूँ? मैं अगर ऐसे ही जीती रही तो सचमुच में पागल हो जाऊंगी. आपको देखकर मैंने सोचा कि आपसे शायद मुझे कोई मदद मिल जाये. " हम तीनों हैरान हो गए. फिर हम तीनों को मंगला पर दया आ गई. सोनी ने मंगला से कहा " तुम हरीश के सामने अपना नाटक जारी रखो. यहाँ लगातार आती रहो. हम तीनों तुम्हारी पूरी मदद करेंगे. तुम्हें प्यासी नहीं रहने देंगे. तुम्हारी प्यास बुझेगी. " सोनी ने मंगला के तुरत फुरत में सारे कपडे उतार दिए और हमारे साथ पलंग पर सुला लिया. सुमन और सोनी ने मंगला के बदन को सहलाया. खूब मसाज किया. उसके स्तनों को खूब मसल मसलकर उसे मदहोश कर दिया. अब उसे एक दम चरम पर लाने के लिए सुमन उसके ऊपर लेट गई. उसने मंगला के गुप्तांग और जननांग पर अपने गुप्तांग और जननांग से दबाव पैदा कर उसमे जबरदस्त प्यास पैदा कर दी. सोनी ने मुझे उस पर लेट जाने को कहा. मैं उस पर लेट गया. यह जानते हुए कि हरीश अभी तक मंगला के जननांग को पूरी तरह से नहीं भेद सका है. मैंने अपने गुप्तांग को उसके जननांग में पूरे जोर से धकेला. लगभग चार पांच मिनट के बाद मुझे सफलता मिल गई. मंगला कि प्यास आज पहली बार बुझी थी. मैंने मंगला के जननांग को अपने लिंग से करीब एक घंटे तक बंद किये रखा. जब मंगला का सारा जिस्म पसीने से भीग गया और उसके होंठ ठन्डे और गीले हो गए तो मैंने उसके होंठों का एक जोरदार खींच पैदा करनेवाला किस लिया और उसे छोड़ दिया. मंगला के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आ गई.अब सुमन और सोनी को भी थोड़ी थोड़ी देर के लिए मैंने अपने साथ लिया और संभोग किया.
अगले एक सप्ताह में मैंने मंगला को पांच बार संभोग से शांत और संतुष्ट किया. मंगला कितनी भूखी थी इस बात का अंदाजा एक दिन के संभोग से लगाया जा सकता है जब मंगला ने पूरे दो घंटों तक अपने जननांग में मेरे लिंग को फंसाए रखा और बिलकुल भी ना थकी. सुमन और सोनी उसकी इस शक्ति से हैरान हो गए. मैंने आज तक ऐसा नहीं सुना था. मुझे थकान तो हुई लेकिन बहुत ही ज्यादा मजा आया.
हरीश को अपने ऑफिस के काम से तीन दिनों के लिए इंदौर जाना था. उसने मंगला को हमारे यहाँ छोड़ दिया. शाम को हरीश मंगला को छोड़ते हुए स्टेशन चला गया. रात को मैं अपने फैक्ट्री में अधिक काम के कारण थकान महसूस कर रहा था. मुझे नींद आने लगी. मैं ड्राइंग रूम के सोफे पर ही झपकियाँ लेने लग गया. टी वी चल रहा था. मंगला मेरे करीब आकर उसी सोफे कि कुसरी में फंसकर बैठ गई और मुझे चूमने और बहलाने लगी. मारे थकन के मेरा बदन टूट रहा था इसलिए मैं उत्तेजित नहीं हो पा रहा था. सोनी मेरी हालत  देख समझ गई. उसने मंगला को अपनी बाहों में लिया और लम्बे वाले सोफे पर लेट गई. उसने मंगला के कपडे उतार दिए. मैं बैठे बैठे ये सब देखने लगा. अब सोनी ने अपने सारे कपडे निकाले. सोनी और मंगला एक दूसरे से लिपट गई. दोनों का जोर जोर से आवाजों के साथ चूमना शुरू हो गया. मंगला अब सोनी के ऊपर लेट गई और उसने सोनी कि टांगों को फैलाकर अपने जननांग को उसके जननांग से भिड़ा दिया. फिर उन दोनों के जननांगों का आपस में रगड़ना शुरू हुआ जो करीब आधे घंटे तक जारी रहा. इसे देखते देखते मेरी नींद तो उडी ही मेरे लिंग से थोडा रस बाहर आगया.
सुमन नहाकर आ गई. वो बाथरूम से बिना कोई कपड़ा अपने जिस्म पर डाले बाहर आई. सोनी और मंगला को उस हालत में देख वो भी उन दोनों के साथ मिल गई. इन तीनों का यह लेस्बियन सेक्स खेल करीब करीब दो घंटों तक चलता रहा. मैं अब अपनी नींद भूल गया और उन्हें देख देखकर मजे लेता रहा, जब लगातार वे तीनों इस तरह आपस में चूमते ; जिस्मों को मिलाते और अपने जननांगो को आपस में रगड़ते रगड़ते थक गई तो तीनों नीचे बिछे गद्दे पर बिना कपडे पहने सीधी लेट गई. इतनी देर तक बैठे रहने के बाद मेरी थकान काम हो गई लेकिन उत्तेजना बढ़ गई. उन तीनों के बदन पसीने से तर हो चुके थे. उनकी साड़ी ताकत लगभग समाप्त हो चुकी थी. मैंने मौके को ताड़ा और नीचे झुककर उन तीनो के नंगे जिस्मों को निहारने लगा. उनके नन्गे बदन पर पसीने की बूंदें मोतीयों जैसी लग रही थी. सुमन को मैंने सबसे पहले लिया और उसके साथ आधा घन्टा संभोग करते बिताया. मारे थकान के मुझे कोई प्रतिरोध नहीं मिला. जैसा मैंने चाह वैसा करता रहा और सुमन वैसे ही करवाती रही. इसी तरह सोनी और मंगला को भी आधे आधे घंटे तक खूब मेरे लिंग के रस से उनके जननागों को तरबतर किया.  फिर हम चारों वहीँ आपस में लिपटकर सो गए.
अगले दिन मैंने फैक्ट्री में बीमारी का बहाना कर तीन दिन की छुट्टी ले ली. फिर इसके बाद शुरू हुआ हम चारों का खेल जो तीनों दिन सवेरे ; दोपहर; शाम  और रात भर रुक रूककर जारी रहा. हमने कोई भी तरीका नहीं छोड़ा. हर तरह से अलग अलग पोजीशनों से संभोग किया.
तय कार्यक्रम के अनुसार देर शाम को हरीश लौटने वाला था. आखिर में मैंने एक बार पहले की तरह सेक्स करने का तय किया. सोफे की गद्देदार सीट पर सबसे पहले सोनी को बिठाया. फिर उसके ऊपर सुमन को और फिर आखिर में मंगला को बिहा दिया. सोनी के सेने पर सुमन की पीठ वाला हिसा था. सुमन के सामने वाले हिस्से पर मंगला की पीथ्वाला हिस्सा था. मुझे तीनों के जननांग एक के ऊपर एक ऐसे नजर आ रहे थे जैसे रस से भरे हुए तीन कुंवे मेरे सामने मुझे ललचा रहे हों. मैंने घडी देखी हरीश के आने में करीब दो घंटे बाकी थे. मैंने अपने जिस्म की सारी  ताकत इकठ्ठा की और उन तीनों पर पिल गया, लगातार मैं उन तीनों के जननांग को एक के बाद एक थोड़ी थोड़ी देर के लिए अपने जननांग से भेदता रहा. उन तीनो को जबरदस्त मजा आया. करीब डेढ़ घंटे के बाद मैंने उन्हें छोड़ दिया. ये तीन दिन ऐसे निकले मानो लगातार चौबीसों घन्टे हम चारों रस के समन्दर में  रहे हों.
करीब सात बजे हरीश आ गया. मंगला उसके साथ चली गई. अब धीरे धीरे मंगला का आना काम होता चला गया. हम तीनों इस बात से खुश थे. मंग्ला ने बताया भी कि अब वो हरीश को थोडा अधिक उत्तेजित करने में सफल हो रही है. अब मंगला सप्ताह में एक बार आती और उस दिन हम चारों एक साथ मजा लूटते. सुमन की इच्छा रहती कि मंगला ज्यादा आये. इसका कारण उसका लेस्बियन होना था. मंगला का हम तीनों से करीब चार महीनो का रहा. फिर एक दिन अचानक मेरे फैक्ट्री के मालिक ने वापी के पास एक छोटे कसबे अतुल में उनकी नै लगने वाली फैक्ट्री का काम काज देखने के लिए मुझे वहां जाने के लिए कह दिया. सोनी हमारे साथ आने  के लिए तैयार हो गई.
मंगला को पता चलते ही वो बहुत उदास हो गई. एक सात उसने हरीश के सामने जोर कि घबराहट का नाटक किया और हमारे घर आ गई. हम उसका आना समझ गये. सारे रात हम चारों ने आखिरी बार एक साथ सेक्स का खेल खेला. मंगला ने पूरी रात गज़ब कि हिम्मत दिखलाई और उसने मुझे अपने साथ कुल मिलाकर पांच बार संभोग करने पर मजबूर किया. सुमन और सोनी ने भी उसके जननांग पर अपने जननांग का सफ़ेद गाढ़ा रस इतनी ही बार बहाकर उसकी पूरी प्यास को भरपूर बुझाया. सवेरे सात बजे तक हम जागते रहे और सारा खले चलता रहा. अंत में मैंने मंगला को आखिरी बार अपने साथ लिया. मैंने मंगला को पाने ऊपर सुलाया और उसके जननांग में अपना लिंग घुसकर मंगला को हिलाकर उसके उस हिस्से को गहरा लाल कर दिया. करीब आठ बजे वो एकदम निढाल हो गई तो सुमन और सोनी उसके घर जा उसे छोड़कर आ गए.
हम लोग भरे दिल से बहुत ही मीठी मीठी यादों के साथ अतुल के लिए रवाना हो गए. मंगला सुमन और सोनी के गले लग बहुत रोई. उसकी जिन्दगी हम तीनो के चलते ही संवरी थी. मैं सुमन और सोनी के साथ पूरे रस्ते यही दुआ करते रहे कि वहां हमारा मान लग जाए क्यूंकि अतुल एक बहुत ही छोटा क़स्बा था और केवल केमिकल की फेक्टारीयाँ  थी.

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