शनिवार, 31 जुलाई 2010

किसी से ना कहना : भाग तीसरा

वामा की शादी हुई उन दिनों मैं एम् बी ए के ट्रिप पर यूरोप गया हुआ था. लौटने पर मुझे वामा की शादी की खबर मिली. मेरी किस्मत साथ दे रही थी . मुझे वामा के ससुराल के शहर में जाने का मौका मिला. मैं अपना काम निपटाकर वामा के घर पहुँच गया. वामा मुझे देखकर हैरान हो गई. उसने मुझे अपने पति से मिलवाया. उसके पति ने मुझसे रात को वहीँ रुके के लिए कहा दिया और मेरा सामान उठाकर अन्दर कमरे में रख दिया. वामा कुछ परेशान हो उठी. मैं उसकी परेशानी समझ गया. मैंने बहुत ना कहा लेकिन वामा के पति नहीं माने. मुझे मजबूरन रुकना पड़ा. खाना खाने के बाद हम बातें करने बैठ गए. वामा पूरे समय खामोश रही. मैं समझ गया कि वामा को अब अपने किये पर पछतावा हो रहा है.
मैं एक अलग कमरे में सो गया. रात के करीब दो बजे फोन की घंटी बजी. मेरी भी आँख खुल गई. पता चला कि वामा के पति जिस फेक्टरी में इन-चार्ज हैं वहां कोई दुर्घटना हुई है और उन्हें उसी वक्त जाना पड़ रहा है. वामा के पति चले गए. मैंने मौका देख वामा से कहा " मैं तुम्हारी परेशानी समझ गया हूँ हम दोनों के हित में यही है कि हम उन मुलाकातों को भूल जाएँ." वामा ने मेरी तरफ देखा और बोली " बात वो नहीं है जो तुम समझ रहे हो. मैं बहुत खुश हूँ इनके साथ. लेकिन आज तक मैं उन मुलाकातों को भुला नहीं पाई हूँ. ना ही तुम को भूल सकी हूँ. मैं जानती हूँ हमने सब गलत काम किया. हमारा रिश्ता क्या था और हमने क्या कर दिया. लेकिन कभी कभी ऐसा हो जाता है. तुम आज भी मेरे उतने ही करीब हो जितने उन दिनों थे. ये पागलपन ही सही ; हवस ही सही लेकिन मुझे इसमें कोई गलत नहीं लगता. आज भी देखो किस तरह से हमें मौका मिला है." मैं चौंक गया. वामा ने फिर वैसी ही मुस्कराहट मेरी तरफ फेंक दी. मैं कुछ देर तक सोचा लेकिन मुझसे रहा नहीं गया. वामा आगे आई और मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया. वामा शादी के बाद थोडा निखर गई थी. वामा मझे लेकर अपने बेडरूम में आ गई. अगले ही पल हम दोनों एक बार फिर निर्वस्त्र हो चुके थे. आज वामा ने मुझे चूम चूमकर पागल कर दिया. कुछ ही देर में फोन के घंटी बजी. मैं वामा के ऊपर लेटा हुआ था. वामा मेर्नीचे दबी थी. वामा ने फोन उठाया. उसक पति ने उसे कहा कि वो एक निकल रहा है और आधे घंटे में पहुँच जाएगा. वामा ने मुझे जोर से चूमा और बोली " ये हमेशा हम आधे घंटे या एक घंटे की समय सीमा में ही क्यूँ मिलते हैं. वो आधे घंटे में पहुँच जायेंगे, जल्दी करो." मैंने बिना कोंडोम ही वामा के जननांग में अपना लिंग घुसेड दिया. वामा ने मुझे मना किया और कोंडोम लगा दिया. लगातार जोर लगाकर हम दोनों ने अपने को थका लिया. अब वामा ने मेरे होंठों को इतने जोर से चूसा कि मेरे लिंग से बहुत ही तेज धारा निकली और वामा के जननांग में एक सैलाब आ गया. हम दोनों ने बहुत कम समय में बहुत मजा ले लिया था. हमने कपडे पहने और मैं अपने कमरे में आकर सो गया.
सवेरे एक और मौका मिलता दिखाई दिया. वामा के पति दस बजते ही ऑफिस चला गया. मेरी ट्रेन दो घंटा देर हो गई. मैं वामा के घर पर ही रुक गया. वामा बहुत खुश हो गई. मैं और वामा एक बार फिर आपस में नंगे होकर लिपटे हुए थे. इस बार वामा की इच्छा पूरी हुई. मैंने लगातार पूरे दो घंटों तक वामा के जननांग को इतनी जोर से भेदा कि उसके आसपास गहरे लाली छा गई. वामा पूरी तरह से थककर पलंग पर लेती हुई थी. वो मुस्कुरा रही थी लेकिन उसके शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी. मैंने एक कोंडोम वामा से लिया और उसे अपने लिंग पर चढाते हुए वामा के ऊपर चढ़ गया. वामा का जननांग जैसे मेरे लिंग का ही इंतजार कर रहा था. मेरा लिंग एक सेकंड में उसमे घुस गया. लिंग के घुसते ही मेरे लिंग ने जैसे बौछार कर दी. वामा जोर से सिसकी और मेरे होंठों को अपने होंठों से दबाकर मी मुंह में ढेर सारा लार का पानी छोड़ गई. उसके ठन्डे लार के पानी ने मुझे नशे में कर दिया. मैंने उसे चूमा और हम अलग हो गए.
जब मैं रवाना हुआ तो वामा बोली " आज ये तय रहा कि हम हमारा ये रिश्ता जारी रखेंगे. जब भी मौका मिलेगा हम यह सब करते रहेंगे. किसी से ना कहना."
------- ये किस्सा अगली मुलाकात के बाद ख़त्म हो गया. कैसे ख़त्म हुआ मैं आपको चोथे भाग में बताऊंगा.

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